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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

(ये नारी की विवशताएं)

            ये नारी की विवशताएं।                 जो चाहें सितम ढायें,                 चुपचाप सहती जाएं।                दिल में करुण वेदना लिए,                बस आह भरती जाएं। इधर कहें अपनो उजारें, उत कुल की लाज जाए।           ये नारी की......................                पर घर को अपना बनाएं,                 प्यारा पीहर को छोड़ के।                प्रीति अनजानों से लगाए,                अपनों से मुख मोड़ के। जिसको समझे वो देवता,फिर हैवान क्यूं बन जाए।            ये नारी की........................                   पूरे समर्पण भाव से,   ...

नकामयाबी की निरशाएँ

कोशिश तो थी मेरी ऊँची उडान भरने की,  अब उन कोशिशो से नकामयाब होने लगा हूँ!  परिवार की जिम्मेदारी ओ ने दबाया है मुझे,  पर उठा हु जरुर पर सहारा न मिला!  जिद्द तो अब भी है मुकाम पाने की,  पर लगन ने जिद्द से नाता ही तोड़  दिया न मुकाम पाने की!  अब तो छोटो का नमन भी दमन पर चोटों का इशारा दे रही,   रिश्तों का बन्धन भी धीमी धीमी किनारा दे रही!  उनकी कामयाबी मे सराहना है मुझे,  पर हमे ऐसा क्यो  लग रहा कि निरादर मेरी हो रही!  इस जमाने से मैं क्या कहु जो नकमयाबी में आंखे बड़ी  और कामयाबी में आंखे झुका लिया करते है!  कामयाब आदमी का संघर्ष सबको दिखता है,  नकामयाब आदमी का संघर्ष किसी को दिखाई नही देती है!  कोशिश तो थी मेरी ऊँची उडान भरने की,  अब उन कोशिशो से नकामयाब होने लगा हूं! Name:--Gajanand jayanti kenwat Address:--dabhara, janjgir champa(C.G.)

पति और पत्नी

पति-पत्नी के रिश्ते का अधार, परवाह,सम्मान,विश्वास और प्यार। दोनो है गाड़ी के पहिये कि भांति, गृहस्थी तभी चलेगी साथ-साथ। दोनो सब कुछ काम बात ले आधा-आधा, ना कोइ कम है, ना कोई ज्यादा। सुख हो,दुख हो या हो अधिकार, सब कुछ समान हो तभी चले परिवार। पति-पत्नि यदि करे एक दूजे का सम्मान, तभी बच्चो को मिले, संस्कार और ज्ञान। यदि कोई समस्या हो तो आपस मे कर ले बात, समझदारी से जीवन चले ना हो कोई आघात। सास-ससुर की सेवा कि पत्नि ले जिम्मेदारी, तो पति भी कर्तव्य निभाए कुछ तो बताये हाथ। सारे गुण-अवगुण अपना ले मिला के हाथ, बिना शर्त के जीवन हो तभी जन्म-जन्म का साथ। रिश्ते मे ईमानदारी और समर्परण , विश्वास कि खुशबू से रिश्ता महके हर छण। जब दोनो तरफ से निभाया जाता है कोई रिश्ता, तभी रहती है उस रिश्ते मे आत्मीयता। समझदारी,साझेदारी,जिम्मेदारी और संयम, पति-पत्नी के रिश्ते के है आधार भूत नियम। Name:- कवयित्री वर्तिका दुबे

(पहचान का नजरिया)

Written by Tamanna Kashyap, उत्तर प्रदेश, सीतापुर।   आए हैं इस जहां में, तो कुछ कम करके जायेंगे। हम छोटे हैं तो क्या हुआ, मगर बड़ा नाम करके जायेंगे। ख्वाहिशों की हमने जो पगड़ी बांधी, बिखरी है आज रंगों के रूप में। सच ही कहा है किसी ने, अच्छी पहचान के लिए, वक्त भी परिंदा बन जाता है। अगर परिंदे बनकर, ना उड़ सके इस गगन में, कर्म चिन्हों की सीढ़ी लेकर, बुलंदियों के शहजादे आसमान को छू जायेंगे।

ठूँठों का श्मशान .......

जाने कितनी रातें बीत गई  ये मन कितना वीरान है  हो रहा प्रतीत ललकारता  मेरे समक्ष,        आज ठूँठों का श्मशान है ॥ घोर संझा के गहरे ज़हन में सोया सारा जहान है  ये गूँगी इमारतें - शून्य वादियाँ  ये बड़े लोगों का संसार है  घट रहीं हैं साँसें हर तरफ ,            ये ठूँठों का श्मशान है ।। याद है मुझे मेरा गाँव  ......... जहाँ हर दिन नया पैगाम है  वहाँ औकात से नही, पिता से जाना जाता नाम है । काश हर जगह ऐसी होती तो ना होता आज,              ये ठूँठों का श्मशान है।।  कवियित्री - नेहा यादव ( xth A ) RPVV IP ExtN. New Delhi 110092

कर्जदार

जिस्म की मशाल  चेहरे कि चकाचौंध                      एक नन्ही सी चिया                      फागुन की बगिया सोंधी माटी , माटी का खिलौना आखिरी सफर , अंतिम बिछौना    आज दौलत कि इस रौशनी को मैं           कलम किए जाता हूँ। तेरा कर्जदार हूँ बन्दे !!          मैं तेरा कर्ज लिए जाता हूँ ।  प्रफुल्लित हृदय की आखिरी बूँद बह गई है । जो डली नींव थी बरसों पेहले वो अब ढह गई है ।               अभी वो जुलाहे की पाखी बेलती है " तू सुन रहा है न ? अबकी डगर भिन्न है ।"  उड़ चला है कबूतरों का डेरा  जानें कहाँ डालेगा बसेरा ?    भिखमंगों कि इस दुनिया को मैं     सन्न किए जाता हूँ । तेरा कर्जदार हूँ बन्दे !! मैं तेरा कर्ज लिए जाता हूँ ॥          प्रेम मोह माया मंझधार  किस गुहार को मैं कर पाया साकार ? रोटी तो न दे पाया उस बच्चे को ! हाँ ल...

शिक्षा

Written by anil kumar , अयोध्या उत्तरप्रदेश काश कहीं हम पढ़ पाते  तो जीवन में कुछ कर पाते  विद्यालय जाने से ना कतराते  डाँट गुरू की सह पाते  तो जीवन में कुछ कर पाते  काश कहीं हम पढ़ पाते  शिक्षा का मोल समझ पाते  तो दर दर ठोकर ना खाते  काश कहीं हम पढ़ पाते  तो जीवन में कुछ कर पाते  जो अव्वल साथी थे मेरे  संग छोड़ गए मेरा सारे , जा पहुँचें हैं उन शिखरों पे।। जहाँ बड़े- बड़े न चढ़ पाते  काश कहीं हम पढ़ पाते , तो जीवन में कुछ कर पाते ।।

गुल्ली डंडा

Written by anil kumar, अयोध्या उत्तरप्रदेश जब गुल्ली डंडा म भय झगड़ा , कालर भय पकडी पकड़ा । मारपीट भय टंडन से  बात फैल गई लवड़न से।।  खबर जाई के पहुँची घर मा  आओ दहिजरऊ बोली अम्मा,  डर के मारे काँपत हैं  पीछे के खिड़की से झांकत हैं।।  बात हमार सुनौ सहदेव  गुस्सा तुहूँ थूक देव नाही घर मा बप्पा माई  खूब करिहै चप्पल से पिटाई  एतने म जब बप्पा पहुँचे  पकड़ के कालर कान पे खीचे।। ज़िन्दगी नरक कय गयौ  सारे अब तू पढ़ भयौ

पंछी का घोंसला

Written by anil kumar, अयोध्या उत्तरप्रदेश एक-एक कण तिनके की  बीट वृक्ष के छिलके की बरखा के बरसात में रह कर  आंधी और तूफान को सह कर कैसे महल बनाती है  कैसे महल बनाती है।। उड़ती तेज विमानों से  चूँचूँ कहती इंसानों से  कहीं उजड़ न जाए मेरा घर  इसी बात का है मुझे डर  बच्चों की याद सताती है  कैसे महल बनाती है  कैसे महल बनाती है आया जब  मौसम सावन का चले तेज झोंके पावन का   धूल उठे बादल में भूमि से  अंधकार छा गया धूल से  कैसी यह  विपदा आई  जो वृक्षों को भी हिलाती है  कैसे महल बनाती है  कैसे महल बनाती है  घर से हो गई मैं बेघर  चारों तरफ मजा फिर कहर  उजड़ गया हाय मेरा घर  उजड गया हाय मेरा घर  चूँचूँ कैसे चिल्लाती है  कैसे महल बनाती है  कैसे महल बनाती है।।

कुवाँरे लड़के

 झारपोंछ के निकले घर से काम से जातहन बाप से कहिके     मार के सैंट लगावय चश्मा  तिरछी नजर से लखय करिश्मा  घूर घूर के ताकत हैं  अव डर के मारे काँपत हैं सोंचत हैं कैसे जाई पास मा बाटय यहकय अम्मा साथ मा  दूर-दूर से करें इशारा  हमहूँ अबहीं अहन कुवाँरा  देखँय शींशा मारँय कंघी  नौटंकी मा ढूँढै रंडी  नेवता मेला एकउ न छूटै  बप्पा चाहै जेतना कूटै  लड़की पाय के मारैं चांस करँय देखाय के डी जे डांस  डांस देख के बिट्टू  हौय जात  हैं लट्टू   शुरू हौय फिर हेलो हाय  पूँछिहै  व्हाट्सएप नंबर बाय    बोली 770  मेरा नंबर यही है हीरो  एकय बात चलै दिन रात छूटे न हलो जानू साथ  अभी बीते न दस दिन  नई मिल  गई फिन   नई मिली छोड़ो पुरानी  कुंवारों की बस यही कहानी।। Written by anil kumar, अयोध्या उत्तरप्रदेश।।

बचपन

 चलो आज कुछ बटोर लें । जीवन को थोड़ा टटोल लें , कुछ पल के लिए बचपन जाके ।। सारी खुशियाँ निचोड़ लें, चलो आज कुछ बटोर लें ।। काँच की शींशी लेकर , मिट्टी की छूही भरकर। लकड़ी की तकथी घटोर लें,  चलो आज कुछ बटोर लें  जीवन को थोड़ा टटोल लें ।।   वह गेट के सामने दुकान पे जाके,  खटमिट्ठा चूरन चटोर लें चलो आज कुछ बटोर लें  अरे बज गई घंटी छुट्टी की,  खाने को खिचड़ी कटोर  चलो आज कुछ बटोर लें , जीवन को थोड़ा टटोल लें ।। बचपन से अब बड़े हो गये,  छोड़कर बचपन किशोर ले  चलो आज कुछ बटोर लें  जीवन को थोड़ा टटोल लें।। Written by Anil kumar, अयोध्या उत्तरप्रदेश।।

(सुहानी बरखा)

झड़ी पे झड़ी आई सावन की घड़ी, कहे को री मन तरसा, आई रेआई सुहानी बरखा। दादूरों ने मेघों को पैगाम भेजा, धानो को अमरत्व की बूंदें देजा, सुनकर गुहार की पुकार बदल गरजा। आई री आई.................... हरी हरी प्रकृति में समा जाने को जी चाहता, पाकर वर्षा की बूंदें, पत्ता पत्ता सजीव हो जाता, धरती का हर कोना _कोना, असंख्य बूंदों से सिंचित कर जा। आई री आई..................... Written by Tamanna Kashyap

Online

वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university आजकल सारा जहाँ है Online, अब सब कुछ मिलता है Online, प्यार भी Online और ब्रेकअप भी Online, विवाह भी Online और तलाक भी Online, सारे त्योहार Online, लोगो का व्यवहार भी Online, बच्चों कि शिक्षा भी Online, गुरू से दीक्षा भी Online, अब भोर जागरण भीOnline, रात्री शयन भी Online, परिवार मे चार सदस्य है जब, कौन कहा पता नही अब, सब मिलते है Online, लोरी व कहानियां रूठ न जाए, बच्चों का भोलापन अब छुट न जाये, शिक्षा तो मिलेगी, संस्कार कहा से लाएंगे सच्ची भावना व संस्कार कैसे सिखाएंगे अपनी संस्कृति की पहचान न भुले, भारत कि ऊँची शान न भुले, अत्मीयता व सेवा भाव रहा नही अब, सभी व्यस्त है जब Online॥   

सास-बहू

  वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university सास-बहू का किस्सा है बहुत ही अजीब। कभी है बहुत दूर कभी दिल के करीब। बहुतो ने लिखा पढ़ा है और व्यंग बनाये है। आज इस रिश्ते पे कुछ हम भी लेकर आए है। सास-बहू का नाम सुनते ही छवि मन मे आती है। एक क्रूर और एक निरीह स्त्री का स्वरूप दिखलाती है। पुरूष क्या कम पड़ गये जो नारी,नारी का दुशमन बन बैठी। वो सास बनकर बहू की अग्नीपरिक्षा ले बैठी। अपने समय को याद करो जब तुम बहु बन कर आयी थी। क्या इक्छा क्या आकांक्षा तुम अपने मन मे लायी थी। थोड़ा सम्मान तोड़ा प्यार तोड़ा स्थान ह्रिदय व मन मे। इसके अलावा क्या और कोई लालसा थी मन मे। अब वही सब तुम अपनी बहु को क्यो नही दे पाती हो। क्यो उसके साथ तुम फिर वही अन्याय कर जाती हो। जब मा डांट सकती है तो सास के टोकने मे क्या बुराई है। जब बेटी के नखरे उठा लो तो बहु को समझाने मे क्या ढीलाई है। जैसा बेटी के लिये चाहते हो वैसा बहु से व्यवहार करो। कुछ तो अपनी सोच व परम्पराओ मे सुधार करो। यदि सास जरा सा भी माँ का रूप ले पाएगी। तो बहू पुरी तरह समर्पित बेटी बन जाएगी।

जीने की राह

 वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university जीवन मे हो गर जहर तो नीलकंठ बन जाना चाहिये। जीने के है कई रास्ते जीना आना चाहिये। मंजिल की राह मे हो यदी कांटे ही कांटे। तो स्वयं हमे पुष्प बन जाना चाहिये। जीने के है कई..... गर सब कुछ हो अच्छा और सब कुछ हो प्राप्य, तो जीने का क्या मजा कुछ कम हो जाना चाहिये। जीने के है कई... ना किसी का सहारा ना किसी से उम्मीद, हमे खुद दुसरो की उम्मीद बन जाना चाहिये। जीने के कई.... अपने लक्ष्य की राह मे हो यदि अड़चने ही अड़चने। अड़चनों को पार कर मुस्कराना चाहिये। जीने के है कई.... अपने मन के डर व संकोच को मिटाकर, हमे स्वयं अपने भय से जीत जाना चाहिये । जीने के है कई.. यदि बनना है सबसे अलग और उठना है ऊंचा  तो थोड़ा झुककर हमे उठ जाना चहिये। जीने के है कई रास्ते जीना आना चहिये।।

बढ़ती जनसंख्या घटते संसाधन

वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university हमारे देश मे जनसंख्या सुरसा के मुख की तरह बढ़ाती जा रही है। संसाधन ऊंट के मुँह मे जीरा के समान कम होते जा रहे है। बढती जनसंख्या ने सारे किर्तिमान ध्वस्त कर दिये। इसकी तुलना मे सारे उपमान फीके पड़ गये। योग्य है लोग फिर भी बढ रही बेरोजगारी। एक-एक स्थान हेतु हजारो मे मारा मारी। भुखमरी हो, महगाई हो या बेकारी। सभी रोगो की जद मे है ये जनसंख्या भारी। रोती कपड़ा और मकान ये मूलभूत अवश्यकताये। पुरी नही हो पा रही इस भीड़तंत्र की ले बलाये। एक अनार सौ बिमार की पुनः हो रही कहावत। हर स्थान और परिस्थिति की बस यही लिखावट। अपने देश को बचाने हेतु हमे हि उद्यम करना होगा। भगवान की देन को त्याग बच्चों को देश का भविष्य समझना होगा। परिवार नियोजन का पालन करे और संसाधन बढ़ाए। जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा व अच्छा भविष्य दे पाए। अपने देश की प्रगती हेतु ये है आवश्यक कार्य। यदि परिवार होगा कम तो सब होगा पर्याप्त। यही भावना हो जन-जन मे व्याप्त। जब घटेगी जनसंख्या तो बढ़ जायेगे संसाधन। तब जीवन होगा सुगम और बढेंगे विकास की ओर कदम। यदि भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाना है। तो हमे...

नारी का घर

वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university कहते है कि नारी का कोई घर नही होता । जबकी नारी के बिना घर, घर नही होता । आज हम आपसे कुछ प्रश्न पुछते है, चलो आज हम नारी का घर ढूढ़ते हैं। बेटी के रूप में जन्म लिया घर आगन को महकाया। अपने नन्हे हाथो से,सपनो के घर को सजाया।  माता-पिता की सेवा कर अपना हर फर्ज निभाया। जब समझने लगी, तो सुनना पड़ा ये सब। सीख लो तुम्हे , क्या करना है और कब। ऐसे न चलो,वैसे न बोलो, ये ना करो तुम। पराया धन हो पराये घर जाना है जरा सम्हलो तुम। कैसी परम्परा है, ये कैसा विधान है। बेटी को छोड़ना होता है अपना जहान है। जब जन्म भूमी पराई हो तो क्या होगा अपना। नींद से जागी और टूट गया सपना। विवाह हुआ तथाकथित अपने घर जाने लगी। फिर से अपने टूटे सपनो को सजाने लगी। नये घर मे पहुंची सबको अपना लिया। फिर एक बार अपना घर बसा लिया। कहने लगे सब,पराये घर से आयी हो। क्या यही शिक्षा संस्कार लायी हो। आता क्या है तुमको , क्या माँ ने सिखाया। पराई हो अपनेपन का है बस दिखाबा। सोचने लगी गलती कहाँ और क्या हो गयी। क्यो सारी दुनिया खफा हो गयी। ना मायका है पुरा ना ससुराल पुरा। सब मुझे मिलता है क्यो ...

(वाह री प्रकृति)

 वाह री प्रकृति तेरा कुछ जवाब नहीं, तूने जो किया है सब कुछ सही। रंग डाला तूने कुछ ऐसे रंगों से, सब हरित पुष्प लता वृक्षों को, जो कभी नहीं फीके पड़ते, तेरे जैसी रंगत कहीं और नहीं। वाह री प्रकृति.................. क्या खूब पंछियों को कला सिखाई, बिना किसी उपकरण उड़ते गगन में, दूर हों परदेशी जा खत पहुंचाए वहीं। वाह री प्रकृति................... ऐसी खुशबू डाली रंग बिरंगे फूलों में, कुछ यूं ही उतर जाती सबके दिलों में, महसूस करते बयां कर सकते नहीं। वाह री प्रकृति..................... Written by Tamanna Kashyap

कैसी दुनिया

ईश्वर कैसी दुनिया है तेरी, यहाँ रोते लोग हजारों हैं। मंदिर में छप्पन भोग लगें, प्रभु फल मेवा भण्डारे चुगें, तरसते भिक्षुक हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., रोटियाँ फिंकती अटारी की, ललचाती आँख भिखारी की, गमछे बांधे पेट हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., राहों में कांटे पग पग पर, नंगे पैर चलता है पथ पर, मजदूर मजबूर हज़ारों हैं। ईश्वर कैसी……., ताकत भी है कमजोर नहीं, श्रम स्वेद गिरे जलधार वहीं, दौलत से दूर हजारों हैं। ईश्वर कैसी………, गरीब की ताकत है मेहनत, अमीर की ताकत है दौलत, पैसे मद चूर हजारों हैं। ईश्वर कैसी…….., ज़ख्म लगे पर हँसता है, मरहम उम्मीद न करता है, ये मेहनत कश हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., रंक बिछौना नहीं छांव पर, गरीब की लाज है दांव पर, लाज खरीदार हजारों हैं। ईश्वर कैसी…….., लाॅकडाउन में बेबस बेचारा, गुल्लक से बहला के हारा, बेकस लाचार हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., पच्चीस हजार का मोबाइल, पत्नी बच्चों संग स्टाइल, ये खुश किस्मत हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., श्मशान में कोई भेद नहीं, चंद रुपये कटे रसीद यहीं, सम देह स्वाह हजारों हैं। ईश्वर कैसी……., स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री" धौलपुर (राजस्थ...

पथिक

रुक जाना तेरा काम नहीं। राहों को खुद ही रोशन कर, डर जाना तेरा काम नहीं। शूल हैं पथरीली पगडन्डी, गिरना भी है उठना भी है। रेतीला मरुथल मृगतृष्णा, तुझे जीना है पीना भी है। उत्साह का दीप जलाए रख, मत आस लगा प्रभाकर की।  जुगनू भी हैं राहे रोशन, मत निहार डगर सुधाकर की। सरिता कल कल बहती जाए, कब पूछे गलियाँ सागर की। तू भी संबल अपना ही बन, मत छलका बूंदें गागर की। मंजिल को तो मिलना ही है, स्वेद कण न कम पड़ने पाए। श्रम वारि जहाँ पड़ जाती हैं, वहीं से निर्झर झरते जाए। नमकीन मोती तेरे मस्तक के, मिल रश्मि से झिलमिल सतरंगी। वसुधा सुरभित हो जाती है, फुलवारी कुसुमित बहु रंगी। पथ भटक ना जाना पथिक तू, पथ बेशक तेरा ओझल हो। परिश्रम "श्री" तेरा संबल है, कोशिश कर कदम न बोझिल हो।                           स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"                                    धौलपुर (राजस्थान)