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बढ़ती जनसंख्या घटते संसाधन


वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university

हमारे देश मे जनसंख्या सुरसा के मुख की तरह बढ़ाती जा रही है।

संसाधन ऊंट के मुँह मे जीरा के समान कम होते जा रहे है।

बढती जनसंख्या ने सारे किर्तिमान ध्वस्त कर दिये।

इसकी तुलना मे सारे उपमान फीके पड़ गये।

योग्य है लोग फिर भी बढ रही बेरोजगारी।

एक-एक स्थान हेतु हजारो मे मारा मारी।

भुखमरी हो, महगाई हो या बेकारी।

सभी रोगो की जद मे है ये जनसंख्या भारी।

रोती कपड़ा और मकान ये मूलभूत अवश्यकताये।

पुरी नही हो पा रही इस भीड़तंत्र की ले बलाये।

एक अनार सौ बिमार की पुनः हो रही कहावत।

हर स्थान और परिस्थिति की बस यही लिखावट।

अपने देश को बचाने हेतु हमे हि उद्यम करना होगा।

भगवान की देन को त्याग बच्चों को देश का भविष्य समझना होगा।

परिवार नियोजन का पालन करे और संसाधन बढ़ाए।

जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा व अच्छा भविष्य दे पाए।

अपने देश की प्रगती हेतु ये है आवश्यक कार्य।

यदि परिवार होगा कम तो सब होगा पर्याप्त।

यही भावना हो जन-जन मे व्याप्त।

जब घटेगी जनसंख्या तो बढ़ जायेगे संसाधन।

तब जीवन होगा सुगम और बढेंगे विकास की ओर कदम।

यदि भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाना है।

तो हमे जनसंख्या वृद्धि की दर को घटाना है।

जब घटेगी जनसंख्या तो होगी शांति चहु ओर।

स्वतः बढ़ेगे संसाधन देश होगा गतिमान पुरजोर।

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