जो चाहें सितम ढायें,
चुपचाप सहती जाएं।
दिल में करुण वेदना लिए,
बस आह भरती जाएं।
इधर कहें अपनो उजारें, उत कुल की लाज जाए।
ये नारी की......................
पर घर को अपना बनाएं,
प्यारा पीहर को छोड़ के।
प्रीति अनजानों से लगाए,
अपनों से मुख मोड़ के।
जिसको समझे वो देवता,फिर हैवान क्यूं बन जाए।
ये नारी की........................
पूरे समर्पण भाव से,
दिन भर करे वो चाकरी।
आपत्तियों से लड़ने को,
दीवार बन आगे खड़ी।
कोमल हृदय इस नारी को,कोई क्यूं समझ ना पाए।
ये नारी की............................
धरती समाई सीता ने,
सतीत्व का प्रमाण दिया।
सम्पूर्ण नारी जाति के,
सम्मान को रक्षित किया।
फिर बात_बात पर दुनिया, क्यूं उसपे उंगली उठाए।
ये नारी की..........................
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Written by Tamanna Kashyap, उत्तर प्रदेश, सीतापुर।
Bahut acchi hai
जवाब देंहटाएंThanx🙏🙏🙏
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