ईश्वर कैसी दुनिया है तेरी,
यहाँ रोते लोग हजारों हैं।
मंदिर में छप्पन भोग लगें,
प्रभु फल मेवा भण्डारे चुगें,
तरसते भिक्षुक हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
रोटियाँ फिंकती अटारी की,
ललचाती आँख भिखारी की,
गमछे बांधे पेट हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
राहों में कांटे पग पग पर,
नंगे पैर चलता है पथ पर,
मजदूर मजबूर हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
ताकत भी है कमजोर नहीं,
श्रम स्वेद गिरे जलधार वहीं,
दौलत से दूर हजारों हैं।
ईश्वर कैसी………,
गरीब की ताकत है मेहनत,
अमीर की ताकत है दौलत,
पैसे मद चूर हजारों हैं।
ईश्वर कैसी……..,
ज़ख्म लगे पर हँसता है,
मरहम उम्मीद न करता है,
ये मेहनत कश हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
रंक बिछौना नहीं छांव पर,
गरीब की लाज है दांव पर,
लाज खरीदार हजारों हैं।
ईश्वर कैसी……..,
लाॅकडाउन में बेबस बेचारा,
गुल्लक से बहला के हारा,
बेकस लाचार हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
पच्चीस हजार का मोबाइल,
पत्नी बच्चों संग स्टाइल,
ये खुश किस्मत हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
श्मशान में कोई भेद नहीं,
चंद रुपये कटे रसीद यहीं,
सम देह स्वाह हजारों हैं।
ईश्वर कैसी…….,
स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
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