वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university
कहते है कि नारी का कोई घर नही होता ।
जबकी नारी के बिना घर, घर नही होता ।
आज हम आपसे कुछ प्रश्न पुछते है,
चलो आज हम नारी का घर ढूढ़ते हैं।
बेटी के रूप में जन्म लिया घर आगन को महकाया।
अपने नन्हे हाथो से,सपनो के घर को सजाया।
माता-पिता की सेवा कर अपना हर फर्ज निभाया।
जब समझने लगी, तो सुनना पड़ा ये सब।
सीख लो तुम्हे , क्या करना है और कब।
ऐसे न चलो,वैसे न बोलो, ये ना करो तुम।
पराया धन हो पराये घर जाना है जरा सम्हलो तुम।
कैसी परम्परा है, ये कैसा विधान है।
बेटी को छोड़ना होता है अपना जहान है।
जब जन्म भूमी पराई हो तो क्या होगा अपना।
नींद से जागी और टूट गया सपना।
विवाह हुआ तथाकथित अपने घर जाने लगी।
फिर से अपने टूटे सपनो को सजाने लगी।
नये घर मे पहुंची सबको अपना लिया।
फिर एक बार अपना घर बसा लिया।
कहने लगे सब,पराये घर से आयी हो।
क्या यही शिक्षा संस्कार लायी हो।
आता क्या है तुमको , क्या माँ ने सिखाया।
पराई हो अपनेपन का है बस दिखाबा।
सोचने लगी गलती कहाँ और क्या हो गयी।
क्यो सारी दुनिया खफा हो गयी।
ना मायका है पुरा ना ससुराल पुरा।
सब मुझे मिलता है क्यो आधा अधुरा।
जिस पुरुष को जन्म देती है ये नारी।
वो पुरुष ही बन बैठा उसका अधिकारी।
चाहे पिता हो,भाई हो,पति हो या बेटा ।
सबने उसे अपनी जरुरत मे समेटा।
मृत हो चुकी परम्परा को हम कब तक ढोएंगे।
कब हम परिवर्तन का बीज बोएंगे।
माता-पिता कहे ये घर -संसार तुम्हारा ।
ये जमी तुम्हारी और ये आसमा तुम्हारा ।
पंखो को फैलाओ और उड़ान भरो तुम।
जैसे चाहो जियो पहचान बनो तुम।
जाए ससुराल तो स्वागत हो कुछ ऐसा ।
इस घर को बना लो तुम अपने जैसा ।
ये घर भी तुम्हारा और मै भी तुम्हारा।
बन जाओ तुम मेरे माता-पिता का सहारा।
हमारे लिये तुम अपना सब छोड़ आयी हो।
सम्भालो अपना घर ना तुम पराई हो।
नारी के अस्तित्व की है ये लड़ाई।
नारी बिना घर सजे ना मंदिर सजे भाई।
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