वर्तिका दुबे Ma B.ed from Allahabad university
जीवन मे हो गर जहर तो नीलकंठ बन जाना चाहिये।
जीने के है कई रास्ते जीना आना चाहिये।
मंजिल की राह मे हो यदी कांटे ही कांटे।
तो स्वयं हमे पुष्प बन जाना चाहिये।
जीने के है कई.....
गर सब कुछ हो अच्छा और सब कुछ हो प्राप्य,
तो जीने का क्या मजा कुछ कम हो जाना चाहिये।
जीने के है कई...
ना किसी का सहारा ना किसी से उम्मीद,
हमे खुद दुसरो की उम्मीद बन जाना चाहिये।
जीने के कई....
अपने लक्ष्य की राह मे हो यदि अड़चने ही अड़चने।
अड़चनों को पार कर मुस्कराना चाहिये।
जीने के है कई....
अपने मन के डर व संकोच को मिटाकर,
हमे स्वयं अपने भय से जीत जाना चाहिये ।
जीने के है कई..
यदि बनना है सबसे अलग और उठना है ऊंचा
तो थोड़ा झुककर हमे उठ जाना चहिये।
जीने के है कई रास्ते जीना आना चहिये।।
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