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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Sarkari teacher aur chhuttiyan

_सरकारी टीचर और छुट्टियां  बड़े दिनों के बाद है आई, ये गर्मी की छुट्टियां, मौज - मस्ती की सेकेंगे अब घूम - घूमकर रोटियां, बहुत बनाए प्लान साल भर, यहां - वहां जाने का, बड़ी मुश्किल से टिकिट बनाया, कश्मीर घूम आने का, जाने का तो कन्फर्म हो गया, वेटिंग रह गया आने का, घर बैठे इंतजार कर रहे, अच्छे दिनों के आने का। सुबह - शाम सेक रहे है, घरवालों के लिए रोटियां। बड़े दिनों.....................................रोटियां।। रोज लहसून पकड़ा देती है बीबी, छीलकर लाने को, अंगूठा और अंगुलियों रोती है, देख लहसून के प्याले को, काट - काट कर प्याज छाले हो गए हाथों में, बेबसी का नीर छलक आया नाक और आखों में। रोज सब्जी में लगा छोंक आंखों में हो गया है मोतिया।। बड़े दिनों.....................................रोटियां।। श्रीमती जी ने शुरू करवाया है, फर्नीचर का काम, आधी छुट्टियां बीत गई, नही है सुस्ताने का काम,  धूल, मिट्टी और बुरादे की है चारो तरफ भरमार, घर में सांस लेना भी अब हो गया है दुसवार। खक ही खक से सन गई है, सभी जन की चोटियां। बड़े दिनों.....................................रोटियां।। गर्मी ने ...

Middle Class

_मिडिल क्लास  घर की जिम्मेदारी,आ गई सर पर पर शुरू नही कमाई है, घर का राशन लाने खातिर  बहुत सी इच्छा दबाई है, पर ख्वाब अभी भी,है जिंदा यही मिडिल क्लास सच्चाई है।। वो घर बनाने का सपना, वो अपनी गाड़ी की चाहत, मां का इलाज करवाने खातिर, इनकी एफडी तुरवाई है, पर ख्वाब अभी भी,है जिंदा  यही मिडिल क्लास सच्चाई है।। दिवाली आ गई नजदीक  पर बोनस नही मिला अब तक, बच्चो के कपड़े लेने है, घर को भी तो रंगवाना है, इतना सब कुछ करना है पर पैसे की चल रही तंगी है। पर ख्वाब अभी भी,है जिंदा यही मिडिल क्लास सच्चाई है।। बेटे का पहला साइकिल या बेटी की पहले ड्राइंग बुक, बहन की शादी की खुशियाँ या  गम में निकले सारे आंसू, मन के किसी एक कोने में  इन सब की जगह बनाई है, यही मिडिल क्लास सच्चाई है।। अमीरी ने अमीरी से बहुत इमरते बनाई है, बुजुर्गो की धरोहर को लेकिन मिडिल क्लास संजोता है। जमी से है जुड़े हुए  किसानी भी है कर डाली, क्षेत्र कोई भी हो इनको छूनी ऊंचाई है, यही मिडिल क्लास सच्चाई है।। इनका,बैंक एक सहारा है वहां पूंजी कुछ बचाई है, विपदा की परिस्थितियों में यही बनती असल कमाई ह...

Suryaputra karna

_ सूर्यपुत्र कर्ण जन्म देते ही माता ने जिसको  नदी में था छोर दिया, समाज में लाज बचाने खातिर पुत्र से नाता तोड दिया। रथ चालक ने गोद लिया घर अपने उसको ले आया, राधा मां का प्यार पाकर  राधेये फिर वो कहलाया। धनुर्विद्या सिकने की उसने  इच्छा अपनी बतलाई, गुरु द्रोण के समक्ष पहुंचकर झोली अपनी पशराई। गुरु द्रोण प्रसन हुए राधेये का कौशल पहचाना, देख सूर्य का तेज़ माथे पर  कर्ण नाम उसे दे डाला। पर विद्यादान नही दे सकते उनकी भी मजबूरी है, गुरुकुल में बस राजपुत्रो को आने की मंजूरी है। ब्राह्मण वाला भेस बनाकर  परशुराम का शिष्य बना, सीखकर धनुर्विद्या उसने ख्वाब अपना पूर्ण किया। पेड़ के नीचे कर्ण बैठा था  गुरुवर गोद में सोए थे, कर्ण उन्हें देख रहा वो गहरी नींद में सोए थे। कर्ण के पाव में कीड़े ने  विश अपना घोल दिया, कर्ण के पाव से लहू का  रास्ता बाहर खोल दिया। सहता रहा कर्ण पीड़ा को  गुरु की निद्रा भंग न की, लहू के ताप से परशुराम की निद्रा आखिर टूट गई। देख कर्ण को खून से लथपथ आशचर्य गुरुवर रह गए, ब्राह्मण के सहनशीलता को देखकर सोच में ही पर गए। समझे की य...

he aurat

_ हे औरत  हे औरत तू कैसे बेटी से बहु बन जाती है,, , हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है,,, जीस आँगन मे बचपन बीता  वो आँगन हो जाता पराया "  जिस बाबुल ने चलना सिखाया,  उसने ही डोली मे बैठाया    डोली उतर कर जब दुजे घर जाए,  माँ छोड़ नयी माँ को पाए फिर से जैसे जनम हुआ,  फिरसे नया आँगन है मिला  जहाँ करते रहते अपनी मनमानी  वो बाबुल का आँगन पराया हुआ  नए माहौल में ढलना है, नयी जिमेदारी आ जाती है।  जो सोती थी देर सुबह तक वो अब जल्दी से उठ जाती है  तरह तरह की बाते सुन कर चुप चाप वो रह जाती है  पिता से जिद करके जो हर काम पसंद का करवाती है।  नये घर मे पति की पसंद की हर चीज  से खुश हो जाती है  हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।  माँ से लड़ झगड़ कर बात बात पर रूठ जाती है  सासु माँ की हर बात सर झुखा कर मान जाती है  हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।  छोटी छोटी बात पर नाखरे खुब दिखाती है।  मन का कुछ ना हुआ तो सारा घर सर पर उठा लेती है  पसंद ना हो फिर भी पति की पसंद को अपना...

Vakt hi sachha saathi

_ वक़्त ही सच्चा साथी हैं - वक़्त ही सच्चा साथी हैं--  दुख में सुख मे हर वक़्त बस वक़्त ने हमें संभाला है,  हम सबको इस दुनिया के सच्चाई से वाकिफ कराया हैं,  जब जब उड़ते हैं हम ख्वाबों मे हकीकत से हमें रूबरू कराया हैं,  होगे सबके best fend for ever वाले,,,, पर हम सब का तो वक़्त ही सच्चा साथी हैं,, कदम कदम पर वक़्त ने हमको अपनी औकात दिखाया हैं  वक़्त से बड़ा ना दुश्मन कोई ना वक्त से बड़ा है दोस्त कोई हम नही हैं, कुछ भी अभी हमको खुद की पहचान बनाना हैं जब खुद को समझ बैठते हैं राजा तब तब ये बात वक़्त ने हमें एहसास कराया हैं कोई  नही है सच्चा साथी , ये वक्त ,वक्त पर वक्त ने हमे बताया हैं  वक़्त की जिसको कदर नही वक़्त ने उसको खुन के आँशु रुलाया हैं,,, अगर कर लिए कदर वक़्त की तो, वक्त ने माटी को भी सोना बनाया हैं कोई माने या ना माने पर  वक्त ने भटके को भी राह दिखाया हैं  कर लो वक्त की कदर , वक़्त ही सच्चा साथी हैं।  कर लो  वक्त की कदर वक्त ही सच्चा साथी है 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  ...

Kishore singh ji

किशोर सिंह जी श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, शरण में ले ले हे ब्रिज बिहारी हे नाथ नारायण, हे, वासुदेवा। खुशियों से झोली भर दे महादेवा। नाम है किशोर सिंह, लेकिन तन से हूं थोड़ा वृद्ध, चलाता हूं गाड़ी स्टाफ की, और बोलता हूं शुद्ध। करता हूं स्वागत सभी का उनके आगमन पर, प्रफुलित हो उठते है सब, मेरी इस नजाकत पर। मन का हूं मौजी, और बातें करता हूं बहुत कम, सभी का मन बहलाता हूं, और मिटा देता हूं गम। जब सभी होते है निद्रा में, तो अचानक से बोल पड़ता हूं,  देख उनकी बौखलाहट खिलखिला कर हंस पड़ता हूं। ये तो उनको जगाने का एक तरीका अपनाया है, लेकिन ये प्यार भी तो उन्होंने ही पनपाया है। भोले बाबा का भक्त हूं, डोडा अफ़ीम खा के मस्त हूं, कर गाड़ी थोड़ी धीमी, 4-5 बार तंबाकू भी दबा लेता हूं,  लगा के झाड़ा, भूत -प्रेत और डाकनी भी भगा देता हूं। करता हूं रोज वंदन, खाटू के श्याम का, प्रभु, अब तो करो उद्धार इस गरीब नवाज़ का। आरजू थी एक रूपियों से भरे कट्टे की, नही चाहिए रकम मुझे गलत काम और सट्टे की। लिखवाई है चिट्ठियां आपको कई, कभी परमानंद जी से तो कभी देवेंद्र भई। शायद, लिखने में ही कुछ कमी रह गई,...

Doli

डोली  एक नादान सी, चुलबुली सी, कभी खूंखार तो कभी बेजान सी, करती है मनमानी, बनती सबकी नानी, शक्ल है सुहानी, पर लगती है बेगानी। हंसी - ठिठोली खूब है करती, अपनी मां की एक न सुनती, बात - बात पर उन्हें डांटती, लेकिन स्नेह उन्ही से करती। ट्यूशन लेती है खूब जोर, खूब मचाती है उसमें शोर, बांधे रखती सबकी डोर, नही होने देती किसी को बोर। कपड़ों की है बहुत क्रेजी, बिलकुल नहीं होती इसमें लेज़ी, हर महीने मार्केट जाती है, कुछ न कुछ ड्रेस वो उठा आती है, जो लाजू को जरा भी पसंद नही आती है। स्वीटी, राजल से करती हैं प्यार, घर बुलाती है उन्हे बार - बार, सहती है उनके नखरे हजार, पटा लेती है उन्हे खिला अचार। नाम है इसका डोली, बिलकुल भी नही है भोली, सबको देती है खूब गोली, कभी नही खेलती होली। 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Vijay singh jagawat EDUCATION : ADDRESS :

Jiwan sangini

जीवन संगिनी उलझन भरा था बचपन इनका, कभी खुशी तो कभी गम में बीता बचपन जिनका, एक बहन के बाद का जन्म था इनका,  नाम रखा लाजवंती जिनका। शानो शौकत से की पढ़ाई गोवा में, पिता जो थे कांट्रेक्टर वहां में, फिर आया इक प्यारा सा भाई, जिसे देख ये बहुत हर्षाई। जीवन व्यतीत हो रहा था अच्छा, क्योंकि आपस में जो था प्यार सच्चा, फिर अचानक लग गया खुशियों पर ग्रहण, पिता से जो बिल्कुल नही हूवा सहन। मामा के संग सभी आ गए जोधपुर, ट्यूशन पढ़ा किया गुजर - बसर, भाई - बहन ने मेहनत में नही छोड़ी कोई कसर, जिसका जल्द ही हुवा असर। फिर शुरू हुआ शादी का सफर, मुझसे कर शादी बनाया हमसफर, बिना सास के पति का घर संवारा, ननद, देवर और ससुर के संग वक्त गुजारा। 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Vijay singh jagawat EDUCATION : ADDRESS :

Nani

नानी मां की भी मां, जिसे कहते है नानी जितनी प्यारी मां, उससे अधिक नानी, मां की हूं लाडली, नानी की हूं नूर, भाग्य से ही मिली है, ऐसी नानी हुजूर। जब भी जाती ननिहाल, प्यार अटूट वो करती, पलकों पर बिठाए रखती, लाड असीम करती। मुझसे ज्यादा वो खुश होती, जब में वहां होती, गोदी में बिठा, निहारती और दुलारती होती। मुझे देख प्रफुलित हो जाती, बच्चों जैसे घुलमिल जाती, अच्छे - अच्छे पकवान बनाती, दूध - मलाई मुझे खिलाती, रूखा - सुखा ही खुद पाती। उम्र का जखीरा अब झलक रहा है, सीधा खड़ा होना अब अखर रहा है, झुक गई है कमर,  कम हो गई है नज़र, जमाने का असर सहस दिख रहा है, जिंदगी का दिया बुझ सा रहा है। 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Vijay singh jagawat EDUCATION : ADDRESS : Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं।

Subah ki os

सुबह की ओस अकसर छुपा रहता है चांद, बादलों की ओट में, महज़ आंखे ही दिखती है, दुपट्टे की कोर से, जब होता है दीदार इस अलौकिक चांद का, मन पुलकित हो उठता है इस चितचोर का। सुबह की प्यारी सी नाजुक ओस है वो, सुंदर, सुशील और अल्हड़ अदा है वो, पतली कमर, गौर वर्ण, मृगनयनी है वो, चंचल, चपल और मृदुल भाषी है वो, कमल की पंखुड़ी से रसीले होठ है जिसके, मधुर मुस्कान छाई रहती है अधरों पर उसके, हर बोल पर खिल उठते है मुंह से फूल जिसके, सुराही सी गर्दन और सुंदर नयन - नक्श है उसके। जब खिलखिला कर हंसती है, सब का मन पुलकित कर देती है, जब होता है मन क्षुब्ध उसका, बिलकुल मॉन धारण कर लेती है, कमर दर्द की पीड़ा को, बस मन ही मन सह लेती है। संगीत की हर धुन पर उंगलियां थिरकाती है जो, बेबाक बोल के सबको अचंभित कर देती है वो, हर जिम्मेदारी, सकुशल निभाती है जो, घर परिवार और ऑफिस में सामंजस्य बिठाती है वो। कोमल ह्रदय और मन की पाक साफ है वो। परिवार में सभी का रखती है ध्यान, नानी का करती है बहुत सम्मान,  शायद फिर मुलाकात हो न हो,  ईश्वर से मांगती है जीवन दान।   करती है सभी का मान - सम्मान, सभी की है लाडल...

Maa

माँ  मेरी मां, सायर मां तुझे सादर प्रणाम, तेरी कृपा से ही हमने पाया हर मुकाम, याद नही कैसी दिखती थी मेरी मां, सुना है, लाखों में एक थी मेरी मां, कितना करती थी प्यार मुझे मेरी मां, शायद, अपने से भी ज्यादा चाहती थी मेरी मां। हमसफर बन पिता के हर धर्म निभाती थी मां, ढाल बन, पिता के संग खड़ी रहती थी मां, सब की खुशहाली के लिए जीती थी मां, दुख सहकर भी मुस्कराती रहती थी मेरी मां। बच्चों का पालन - पोषण, सहर्ष करती रही मां, किसी पर भी आंच नहीं आने देती थी मां, खुद रोकर भी हमे हंसाती थी मां, हर मुश्किलों को आसान कर देती थी मेरी मां। काश आज तू हमारे साथ होती मां, उम्र के पड़ाव में पिता के साथ होती मां, चंदा सी चांदनी देती मां, मधु सी मधुरता देती मां, कांता सी सुंदरता देती मां, संतोष सी संतोषी बनाती मां, विजय सी विजेता बनाती मां, जसवंत सा जस देती मेरी मां। दूर रहकर भी बस यूं ही मार्ग प्रशस्त करते रहना, चाहे ख्वाबों में ही सही, रोज जागते रहना, अब तक तो निभाया है, आगे भी निभाते रहना, हर सुख में शरीक रहना, हर दुख में हिम्मत देना, जिंदगी के हर मुकाम पर आपका साथ रखना। (मन के बोल - विजय सिंह ज...