किशोर सिंह जी
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,
शरण में ले ले हे ब्रिज बिहारी
हे नाथ नारायण, हे, वासुदेवा।
खुशियों से झोली भर दे महादेवा।
नाम है किशोर सिंह, लेकिन तन से हूं थोड़ा वृद्ध,
चलाता हूं गाड़ी स्टाफ की, और बोलता हूं शुद्ध।
करता हूं स्वागत सभी का उनके आगमन पर,
प्रफुलित हो उठते है सब, मेरी इस नजाकत पर।
मन का हूं मौजी, और बातें करता हूं बहुत कम,
सभी का मन बहलाता हूं, और मिटा देता हूं गम।
जब सभी होते है निद्रा में, तो अचानक से बोल पड़ता हूं,
देख उनकी बौखलाहट खिलखिला कर हंस पड़ता हूं।
ये तो उनको जगाने का एक तरीका अपनाया है,
लेकिन ये प्यार भी तो उन्होंने ही पनपाया है।
भोले बाबा का भक्त हूं, डोडा अफ़ीम खा के मस्त हूं,
कर गाड़ी थोड़ी धीमी, 4-5 बार तंबाकू भी दबा लेता हूं,
लगा के झाड़ा, भूत -प्रेत और डाकनी भी भगा देता हूं।
करता हूं रोज वंदन, खाटू के श्याम का,
प्रभु, अब तो करो उद्धार इस गरीब नवाज़ का।
आरजू थी एक रूपियों से भरे कट्टे की,
नही चाहिए रकम मुझे गलत काम और सट्टे की।
लिखवाई है चिट्ठियां आपको कई,
कभी परमानंद जी से तो कभी देवेंद्र भई।
शायद, लिखने में ही कुछ कमी रह गई,
कट्टा तो आया लेकिन रकम कहीं और चली गई।
मेरे हिस्से तो सिर्फ और सिर्फ रखवाली ही आई।
हे! प्रभु, तेरी तो हर लीला ही अपरम्पार है,
अब तो दिला दो वो पैसों से भरा कट्टा,
जिसका मुझे वर्षों से इंतजार है।
गाड़ी के पूरे स्टाफ को भी अब देना पूरे नोट है,
एक को ज़रा भी नही, क्योंकि, उनके मन में खोट है।
(हंसी ठिठोली - विजय सिंह जागावत)
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