सुबह की ओस
अकसर छुपा रहता है चांद, बादलों की ओट में,
महज़ आंखे ही दिखती है, दुपट्टे की कोर से,
जब होता है दीदार इस अलौकिक चांद का,
मन पुलकित हो उठता है इस चितचोर का।
सुबह की प्यारी सी नाजुक ओस है वो,
सुंदर, सुशील और अल्हड़ अदा है वो,
पतली कमर, गौर वर्ण, मृगनयनी है वो,
चंचल, चपल और मृदुल भाषी है वो,
कमल की पंखुड़ी से रसीले होठ है जिसके,
मधुर मुस्कान छाई रहती है अधरों पर उसके,
हर बोल पर खिल उठते है मुंह से फूल जिसके,
सुराही सी गर्दन और सुंदर नयन - नक्श है उसके।
जब खिलखिला कर हंसती है,
सब का मन पुलकित कर देती है,
जब होता है मन क्षुब्ध उसका,
बिलकुल मॉन धारण कर लेती है,
कमर दर्द की पीड़ा को,
बस मन ही मन सह लेती है।
संगीत की हर धुन पर उंगलियां थिरकाती है जो,
बेबाक बोल के सबको अचंभित कर देती है वो,
हर जिम्मेदारी, सकुशल निभाती है जो,
घर परिवार और ऑफिस में सामंजस्य बिठाती है वो।
कोमल ह्रदय और मन की पाक साफ है वो।
परिवार में सभी का रखती है ध्यान,
नानी का करती है बहुत सम्मान,
शायद फिर मुलाकात हो न हो,
ईश्वर से मांगती है जीवन दान।
करती है सभी का मान - सम्मान,
सभी की है लाडली, जिसमे बसती है सभी की जान।
ऐसी ही है, विजय की काल्पनिक परी की पहचान।
विजय सिंह जागावत (फौजी)
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Om Tripathi
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