_सरकारी टीचर और छुट्टियां
बड़े दिनों के बाद है आई, ये गर्मी की छुट्टियां,
मौज - मस्ती की सेकेंगे अब घूम - घूमकर रोटियां,
बहुत बनाए प्लान साल भर, यहां - वहां जाने का,
बड़ी मुश्किल से टिकिट बनाया, कश्मीर घूम आने का,
जाने का तो कन्फर्म हो गया, वेटिंग रह गया आने का,
घर बैठे इंतजार कर रहे, अच्छे दिनों के आने का।
सुबह - शाम सेक रहे है, घरवालों के लिए रोटियां।
बड़े दिनों.....................................रोटियां।।
रोज लहसून पकड़ा देती है बीबी, छीलकर लाने को,
अंगूठा और अंगुलियों रोती है, देख लहसून के प्याले को,
काट - काट कर प्याज छाले हो गए हाथों में,
बेबसी का नीर छलक आया नाक और आखों में।
रोज सब्जी में लगा छोंक आंखों में हो गया है मोतिया।।
बड़े दिनों.....................................रोटियां।।
श्रीमती जी ने शुरू करवाया है, फर्नीचर का काम,
आधी छुट्टियां बीत गई, नही है सुस्ताने का काम,
धूल, मिट्टी और बुरादे की है चारो तरफ भरमार,
घर में सांस लेना भी अब हो गया है दुसवार।
खक ही खक से सन गई है, सभी जन की चोटियां।
बड़े दिनों.....................................रोटियां।।
गर्मी ने तेवर दिखालये, हालत हो गई है खस्त,
शाम की हुई बारिश ने, मौसम बना दिया मस्त,
जीभ चटकारे लेनी लगी, खाने को कुछ मस्त,
ठूंस - ठूंस कर खाये पकोड़े, जिससे लग गए दस्त।
अस्पताल में पड़े - पड़े, अब खा रहे है गोलियां।
बड़े दिनों.....................................रोटियां।।
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Poet
Vijay singh jagawat
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