_ हे औरत
हे औरत तू कैसे बेटी से बहु बन जाती है,, , हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है,,,
जीस आँगन मे बचपन बीता
वो आँगन हो जाता पराया "
जिस बाबुल ने चलना सिखाया,
उसने ही डोली मे बैठाया
डोली उतर कर जब दुजे घर जाए,
माँ छोड़ नयी माँ को पाए फिर से जैसे जनम हुआ,
फिरसे नया आँगन है मिला
जहाँ करते रहते अपनी मनमानी
वो बाबुल का आँगन पराया हुआ
नए माहौल में ढलना है, नयी जिमेदारी आ जाती है।
जो सोती थी देर सुबह तक वो अब जल्दी से उठ जाती है
तरह तरह की बाते सुन कर चुप चाप वो रह जाती है
पिता से जिद करके जो हर काम पसंद का करवाती है।
नये घर मे पति की पसंद की हर चीज से खुश हो जाती है
हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।
माँ से लड़ झगड़ कर बात बात पर रूठ जाती है
सासु माँ की हर बात सर झुखा कर मान जाती है
हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।
छोटी छोटी बात पर नाखरे खुब दिखाती है।
मन का कुछ ना हुआ तो सारा घर सर पर उठा लेती है
पसंद ना हो फिर भी पति की पसंद को अपना बना लेती है
नये घर में जाती ही, तु जिमेदार बहुत हो जाती है।
हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।
हे औरत तु कैसे बेटी से बहु बन जाती है।
नादान गुड़िया सी तु कैसे जिमेदार बहु बन जाती है
हे औरत तु कैसे बेटी से बहू बन जाती है।
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Poet
Nidhi Mishra
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