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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कर्म और विचार

   छोटे से तुम बड़े हो गये     अब जरा करो विचार समय ने तुमसे बचपन छीना। अब समय को लेकर करो विचार। बहुत हुआ चिंतन अब।     चिंतन को लेकर करो विचार। यूं चिंतन से बस नहीं होते उपचार। इस बात मैं करो विचार। कर्म की राह का ।  मत करो विचार।  अब क्रम को हो तैयार। बहुत हुआ चिंतन और विचार । अब कर्म करो यार ,अब कर्म करो यार, कर्म और विचार,,   Written by Anivesh Paroha                 Posted by Om Tripathi

जीवन

  जीवन का सफर भी बहुत मनमाना लगता है। कभी फूलो का चमन,  कभी काटो का आशियाना लगता है। कैसे निभाये इस रिश्ते की दुनियादारी को,  हर अपने के वेश में बेगाना लगता है ।  अच्छे लोगों के साथ कोई भी नही, बुरे के साथ जमाना लगता है ।   कभी लोगों के ताने बने कोहरे भरी ठण्ड।  तो बच्चों का प्यार , सुहानी धूप का परवाना लगता है।  कोई मुझे कुछ भी दे या ना दे,  सबको कुछ देना मेरा शोक पुराना लगता है । लोग खीचते है पैर आगे बडे़ न हम,  पुन: खड़े होना शान से बादशाहाना लगता है।  जीवन का सफर भी बहुत मनमाना लगता है।   Written by Vartika Dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

नारी

   ऐ नारी तू क्यों बनी बेचारी ।  शक्ति स्वरूपा , ममतामयी, अन्नपूर्णा नारी ।  स्वयं में सम्पूर्ण फिर क्यों टू हारी। आज की नारी सब पे है भारी।  देवी स्वरूपा पूज्य माँ के रूप में नारी । प्रेम स्वरूपा समान पत्ली के रूप में नारी ।  वात्सल्य स्वरूप पुत्री के रूप मे नारी । जीवन दायनी नारी स्वंय से है हारी ।  समाज व लोगों को देकर महत्व बनी बेचारी।  स्वयं का अस्तित्व स्वयं से हारी। अपनी खुशियों को परिवार पे बारी।  अपनी दुनिया को |  नारी बिन घर बने सूनी चार दिवारी।   सर्वगुण आज की नारी सब ये भारी॥  Written by Vartika Dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

समय

  ये कैसा समय आया है अशांत, सभी दिख रहे हैं भ्रांत। एक तरफ कोरोना का वार, दूसरी तरफ शत्रु आक्रांता का प्रहार। मृत्यु आ रही बढ़ाए हाथ, कोई स्वयं छोड़ रहा जीवन का साथ। कुछ भी नहीं है निश्चित, भविष्य दिख रहा अनिश्चित। छोड़कर निराशा का हाथ, चलना होगा साथ-साथ। सिखाती बच्चों की मुस्कान, बनना है अच्छा इंसान। साहस देता देश का सैन्यबल, हजारों फीट ऊँचाई पे भी अटल। आएगा ऐसा भी दौर, जब भारत होगा विश्व सिरमौर। Written by Vartika Dubey Phulpur,Prayagraaj U.P. Posted by Om Tripathi

जिंदगी - बाकी है

"ऐ जिदगीं जरा सा ठहर जा,  अभी बहुत कुछ करना बाकी है ।  बहुत लोगो की उम्मीद हूँ मैं,  उन्हें पूरा करना अभी बाकी है । बच्चों के लिये है जीना,  उनकी प्रेरणा बननी बाकी है।  कुछ लोगो को है औकात बताना, उन्हें औकात में लाना बाकी है। कुछ लोगों की नजरों को है झुकाना,  अपना कद बढाना अभी बाकी है।  ऐ जिंदगी जरा धीरे चल ,  अभी आसमान छुना बाकी है। " Written by Vartika dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

प्यारा वतन

गुनगुनाऐं नौजवां मस्ती में होके मगन,  सारे जहाँ से प्यारा,  हमको ये हमारा वतन- - - - - - - - - इस देश में खिले,  कितने सुन्दर -सुन्दर चमन,  उनसे फैली उस  खुशबू से,  महक उठा मेरा वतन. सारे जहाँ- - - - - - - - - मिट करके भी जो अमिट रहे, दिल में जरूर उत्साह उठे,  जब मर मिटने की बारी आये,  ये तिरंगा हमारा हो कफन, सारे जहाँ- - - - - - - - - युग-युगान्त तक उन्नतिशील रहे, मन सोच के ये हर्षाए, भारत में हमेशा होता रहे, ऐसे नव वीरों का सृजन,   सारे जहाँ - - - - - - - - - Written by Tamanna Kashyap Rajaparapur, Sitarpur,  U. P.  Posted by Om Tripathi

धर्म की राह

  है बड़ी दुर्गम डगर ये,  पर नहीं कमजोर है,  धर्म की इस राह पर कठिनाइयाँ घनघोर हैं।  है गर्त की उस राह से, हमको बचाता धर्म ही,  सच्चाई और बेईमानी का , दर्पण दिखाता धर्म ही  रात काली छाया है साक्षात तो भोर है ।  बड़ी दुर्गम है - - - - - - - है सभ्यता का आचरण ,सम्बधों की लक्ष्मणरेखा  मानव,जो तूने किया , रखता है सबका लेखा  क्यूँ भटकता है रे प्राणी! मुक्ति का रास्ता इस ओर है । है बड़ी दुर्गम - - - - - - - - Written by Tamanna Kashyap Rajparapur,Sitarpur, U.P. Posted by Om Tripathi

आज की नारी

  संभल जाओ ऐ आततायी पुरुष,  अब आग्रत नारी आती है । ये नही द्वापर की दोपदी, जो भरी सभा में लूट जाए , ये आज की लक्ष्मी बाई है, जो मारेगी चाहे फिर मिट जाए। मंदिर में नारी को पूजते हो,  बाहर आकर लूटने जाते हो ।  थे दोहरा चरित ऐ पुरूष जाति,  तुम समाज को दिखलाते हो।  अब किसी निर्भया की कहानी.  किर न दोहराई जाएगी।  जो देखेंगी गन्दी नजरों से, वो आँखें अब फोडी जाएंगी।  उठो ए कन्या , नारी स्त्री अब , अपनी शक्ति को पहचानो तुम।  किसी सहायता व मदद को अब  अपना  मत जानो तुम  बन जाओ काली और दुर्गा  आत्मसम्मान की ज्वाला को धधकाओ तुम महिषासुर का मर्दन करो,  और अपनी प्यास बुझाओ तुम । Written by Vartika Dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

दुनिया

  कैसा है ये दुनिया का नियम, पैसा कायदा बनाया जाता है ?  जीवित व्यक्ति में अवगुण ही अवगुण,  मरने के बाद गुगवान बताया जाता है।  जिंदा रहते जो दमन करे अपनी इच्छाओं का,  मरने पर अच्छा इन्सान बताया जाता है ।  जिंदा रहने पर नहीं मिलती  सुकून की दो रोटी ।  मरने पर हजारों लोगों को भोजन कराया जाता है।  जीवित रहते जो पल-पल तरसे खुशियों को,  मरने पर लाखों का दान कराया जाता है।  कैसा है ये दुनिया का नियम.......  Written by Vartika Dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

माँ पर विशेष

माँ ईश्वर का प्रतिरूप।  माँ सर्दी की धूप।  माँ तपती दोपहर की छाँव।  माँ सागर में है नाव।  माँ हर दर्द की दवा।  माँ मलयांचल की हवा।  माँ हर मुश्किल का हल।  माँ दुखियों का संबल।  माँ मित्र, पहला प्यार, खुदा।  माँ कुबूल हुई दुआ।  माँ बच्चे की प्रथम गुरू। माँ से ही जीवन हुआ शुरू।  माँ है तो हैं हम, ऐ माँ तुझे नमन। Written by Vartika Dubey Phulpur, Prayagraaj Posted by Om Tripathi

तू चल

  गर करना है मुश्किलों का हल हो तो, तू चल | होना है जीवन मे सफल तो, तू चल। बनना है मजदूरों का सबल तो, तू चल। साफ करनी है लोगों के मस्तिष्क की दलदल तो तू चल ।  दिखना है यदि सबसे विरल तो, तू चल ।  छूना है आसमान का आंचल तो, तू चल ।  यदि देना है लोगों को जवाब प्रतिपल तो , तू चल ।  ढूंढना है जीवन के प्रश्नों का हल तो तू चल । पीना है समुद्र मंथन का गरल हो, तो तू चल ।  खिलाना है यदि कीचड़ मे कमल तो , तू चल। चलते रहना है जीवन में हर पल इसीलिये, तू चल॥  Written by Vartika Dubey  (M.A, B.Ed)  Phulpur, prayagraj Posted by Om Tripathi

मजदूर हुआ मजबूर

   मजदूर को मजबूर बना दिया हमने,  भूखा प्यासा उन्हें सड़कों  पे ला दिया हमने।   जिन्होंने बनाई सड़कें गाड़ियां व इमारतें,   उन्हें घर की आस में, चिर निद्रा में सुला दिया हमने।  आत्म निर्माण भारत बनने की राह में ,   कई कृष्णाओं को अनाथ बना दिया हमने।   स्वाभिमान से करके खाने वालों को,  दान व  कर्ज का मोहताज बना दिया हमने।   उनका बलिदान व  ह्रदय विदारक मौत बनी राजनीति,  उन्हें सिर्फ चर्चा का विषय बना दिया हमने।  कब जागेगी हमारी इंसानियत और हम,  भारत के निर्माताओं को गम से चूर बना दिया हमने।  एक दिव्यांग बच्चे के पिता को, वात्सल्य वस चोर बना दिया हमने। मजदूर को मजबूर बना दिया हमने॥  Written by Vartika Dubey (M.A , B.ed)  Phulpur, Praayagraaj P osted by Om Tripathi