ऐ नारी तू क्यों बनी बेचारी ।
शक्ति स्वरूपा , ममतामयी, अन्नपूर्णा नारी ।
स्वयं में सम्पूर्ण फिर क्यों टू हारी।
आज की नारी सब पे है भारी।
देवी स्वरूपा पूज्य माँ के रूप में नारी ।
प्रेम स्वरूपा समान पत्ली के रूप में नारी ।
वात्सल्य स्वरूप पुत्री के रूप मे नारी ।
जीवन दायनी नारी स्वंय से है हारी ।
समाज व लोगों को देकर महत्व बनी बेचारी।
स्वयं का अस्तित्व स्वयं से हारी।
अपनी खुशियों को परिवार पे बारी।
अपनी दुनिया को |
नारी बिन घर बने सूनी चार दिवारी।
सर्वगुण आज की नारी सब ये भारी॥
Written by
Vartika Dubey
Phulpur, Prayagraaj
Posted by
Om Tripathi
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