ये कैसा समय आया है अशांत, सभी दिख रहे हैं भ्रांत।
एक तरफ कोरोना का वार, दूसरी तरफ शत्रु आक्रांता का प्रहार।
मृत्यु आ रही बढ़ाए हाथ, कोई स्वयं छोड़ रहा जीवन का साथ।
कुछ भी नहीं है निश्चित, भविष्य दिख रहा अनिश्चित।
छोड़कर निराशा का हाथ, चलना होगा साथ-साथ।
सिखाती बच्चों की मुस्कान, बनना है अच्छा इंसान।
साहस देता देश का सैन्यबल, हजारों फीट ऊँचाई पे भी अटल।
आएगा ऐसा भी दौर, जब भारत होगा विश्व सिरमौर।
Written by
Vartika Dubey
Phulpur,Prayagraaj
U.P.
Posted by
Om Tripathi
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