संभल जाओ ऐ आततायी पुरुष,
अब आग्रत नारी आती है ।
ये नही द्वापर की दोपदी,
जो भरी सभा में लूट जाए ,
ये आज की लक्ष्मी बाई है,
जो मारेगी चाहे फिर मिट जाए।
मंदिर में नारी को पूजते हो,
बाहर आकर लूटने जाते हो ।
थे दोहरा चरित ऐ पुरूष जाति,
तुम समाज को दिखलाते हो।
अब किसी निर्भया की कहानी.
किर न दोहराई जाएगी।
जो देखेंगी गन्दी नजरों से,
वो आँखें अब फोडी जाएंगी।
उठो ए कन्या , नारी स्त्री अब ,
अपनी शक्ति को पहचानो तुम।
किसी सहायता व मदद को अब
अपना मत जानो तुम
बन जाओ काली और दुर्गा
आत्मसम्मान की ज्वाला को धधकाओ तुम
महिषासुर का मर्दन करो,
और अपनी प्यास बुझाओ तुम ।
Written by
Vartika Dubey
Phulpur, Prayagraaj
Posted by
Om Tripathi
Very nice & heart touching
जवाब देंहटाएं