जीवन का सफर भी बहुत मनमाना लगता है।
कभी फूलो का चमन,
कभी काटो का आशियाना लगता है।
कैसे निभाये इस रिश्ते की दुनियादारी को,
हर अपने के वेश में बेगाना लगता है ।
अच्छे लोगों के साथ कोई भी नही,
बुरे के साथ जमाना लगता है ।
कभी लोगों के ताने बने कोहरे भरी ठण्ड।
तो बच्चों का प्यार ,
सुहानी धूप का परवाना लगता है।
कोई मुझे कुछ भी दे या ना दे,
सबको कुछ देना मेरा शोक पुराना लगता है ।
लोग खीचते है पैर आगे बडे़ न हम,
पुन: खड़े होना शान से बादशाहाना लगता है।
जीवन का सफर भी बहुत मनमाना लगता है।
Written by
Vartika Dubey
Phulpur, Prayagraaj
Posted by
Om Tripathi
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