किसी व्यक्ति ने एक महात्मा से पूछा, "भगवन! पत्थर को तो जल में पिघलते देखा है, लेकिन यदि एक इंसान का हृदय पत्थर की भाँति हो;तो ऐसी कौन सी युक्ति है जो उसके हृदय को मोम की भाँति कोमल बना सके"? महात्मा मुस्कुराए और उन्होंने बड़ा ही सुंदर उत्तर दिया। जिसका नाम सुनते ही हर जीव जंगम और प्राणी मात्र में एक हर्ष की लहर दौड़ जाती है, रोम रोम झांकरित हो उठता है कटुता कोसों दूर हो जाती है अर्थात' प्रेम'। प्रेम का संबंध उस स्थान से होता है, जहाँ पर समस्त राग द्वेष, काम वासना, क्रोध उस स्थान से पद्दालित हो जाते हैं। प्रेम उस सागर की तरह है जिसकी जितनी गहराई में जाओगे, यह उतना ही प्रगाढ़ होता जायेगा। "गहरी निशा में सोई हुई इन ओस की बूँदों को भोर के आतप् ने प्रेममय होकर मोती जैसा चमका दिया। " "सुबह की लाली नवीन पल्लवों पर ऐसे बिखरी मानो जैसे कि हर कली खिलने के लिए मजबूर हो उठी हो। " संपूर्ण प्राकृति की सुंदरता प्रेम के अविभूत ही चलायमान है। प्रेम का शरीर से कोई संबंध नहीं। "प्रेम शरीर नही मन है"। " काम वासना में लिपटा हुआ ये शरीर उस सहजीवी पौधे...
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