Hamari kavita सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"निःस्वार्थ प्रेम"

किसी व्यक्ति ने एक महात्मा से पूछा, "भगवन! पत्थर को तो जल में पिघलते देखा है, लेकिन यदि एक इंसान का हृदय पत्थर की भाँति हो;तो ऐसी कौन सी युक्ति है जो उसके हृदय को मोम की भाँति कोमल बना सके"?  महात्मा मुस्कुराए और उन्होंने बड़ा ही सुंदर उत्तर दिया। जिसका नाम सुनते ही हर जीव जंगम और प्राणी मात्र में एक हर्ष की लहर दौड़ जाती है, रोम रोम झांकरित हो उठता है कटुता कोसों दूर हो जाती है अर्थात' प्रेम'। प्रेम का संबंध उस स्थान से होता है, जहाँ पर समस्त राग द्वेष, काम वासना, क्रोध उस स्थान से पद्दालित हो जाते हैं।  प्रेम उस सागर की तरह है जिसकी जितनी गहराई में जाओगे, यह उतना ही प्रगाढ़ होता जायेगा।  "गहरी निशा में सोई हुई इन ओस की बूँदों को भोर के आतप् ने प्रेममय होकर मोती जैसा चमका दिया। " "सुबह की लाली नवीन पल्लवों पर ऐसे बिखरी मानो जैसे कि हर कली खिलने के लिए मजबूर हो उठी हो। " संपूर्ण प्राकृति की सुंदरता प्रेम के अविभूत ही चलायमान है। प्रेम का शरीर से कोई संबंध नहीं। "प्रेम शरीर नही मन है"।  " काम वासना में लिपटा हुआ ये शरीर उस सहजीवी पौधे...

Dalali

 * दलाली *  'शहर में हमने खरीदी थी एक जमीन। वह निकली मेरी बर्बादी की मशीन।' 'हमने सोचा हम यहां आबाद हो जाएंगे। हमको क्या मालूम था कि हम यहां बरबाद हो जाएंगे।' 'हमको क्या मालूम था कि ये बेईमानों की नगरी है। ये दही और दूध की नहीं पापों की गगरी है।' 'जिसने हमको जमीन दिलाई वो दलाल निकला। बड़ा निकम्मा, चालबाज, बेईमान निकला।' 'उसने अपने मकान में एक कमरा किराए पर उठाया। हमने उसके मकान में एक विद्यार्थी बसाया।' 'विद्यार्थी ने सोचा खर्चे के लिए क्यों ना पढ़ा दे ट्यूशन। इससे घर वालों को खर्चे का कोई नहीं रहेगा टेंशन।' 'एक दिन मालिक ने कहा यहां तुम क्या करते हो। मेरे ही मकान में तुम ट्यूशन पढ़ाते हो।' 'अगर तुमको मेरे मकान में पढ़ाना है ट्यूशन। तो हमें भी तुमको देना होगा कमीशन।' 'मैंने सोचा यह कैसा अजीब शहर है। यहां गरीबों पे, किरायेदारों पे, दलालों का कहर है।' 'मैंने सोचा तीर्थस्थल है त्रिवेणी का  शहर है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था ये दलालों का शहर है।' 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet ...

Patangwaji

 _ पतंगबाजी 'शाम का वक्त था, मौसम बड़ा सुहाना था। त्योहार का दिन था, लोगों को पतंग उड़ाना था।' 'रंग बिरंगी पतंगे कटती रहे, उड़ती रही, बढ़ती ही। बड़ी देर तक इस नजारे को, मेरी आंखें देखती रही।' 'मुझे पतंग उड़ाने में जरा भी दिलचस्पी नहीं। फिर समय था इसलिए नजरें देखती रही।' 'बड़ी देर तक हमने इन पतंगों का नजारा देखा। बड़ा अच्छा लगा कि हमने एक दूसरे को काटते देखा।' 'कटी पतंग किस दिशा में जाएगी, इसका पता नहीं। पतंग लूटने वालों का कहीं अता पता नहीं।' 'पतंग उड़ाने का लोगों का अजीब शौक है। छत पर उड़ाते हैं तो मौत का नहीं खौफ है।' 'आज पतंग उड़ाने वालों का मैंने समर देखा। पतंग लूटने वालों को कसते अपनी कमर देखा।' 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohanganj, Ashapur Ruru amethi आर्थिक मदद   8756391239765@paytm धन्यवाद Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 930...

Shadi

 _ शादी   'बड़ी मजा आया जब हमने शादी की। अपने हाथों से हमने बर्बादी की।' 'मेरे पापा ने कहा बेटा शादी कर लो। जिंदगी के हसीन सपने कैद कर लो।' 'मुझे क्या पता था कि ये हमें फंसा रहे हैं। मेरा घर बसा रहे हैं या उजाड़ रहे- हैं।' 'मैंने जो गलती कि उसको भुगत रहा हूं। इस जिंदगी को घुट घुट कर जी रहा हूं।' 'शादी से पहले बड़ी मजा आती थी। खूब नाच हुआ, खूब बाजा बजा, जब बारात जाती थी।' 'शादी में शादी की पूरी रस्में हो गई। बारात के साथ दुल्हन भी घर आ गई।' 'कुछ ही पलों के बाद मेरी शादी हो गई। मेरी जिंदगी के बर्बादी की शुरुआत हो गई।' 'अब ऐसी जिंदगी जीने की आदत सी हो गई है। पहले दो बेटे थे अब एक बेटी हो गई है।' 'अब कोई चिंता नहीं कोई गम नहीं है। हमारे जीने की इच्छा थम गई है।' 'अब मैं जीता हूं जीता ही रहूंगा। जिंदगी के गमो को पीता ही रहूंगा।' 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh Kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohanganj, Ashapur Ruru Amethi आर्थिक मदद   8756391239765@paytm धन्यवाद Publi...

Galiyare ke kavi

  _गलियारे के कवि 'मैं कवि नहीं एक अजनबी हूं। अपने आपको कहता लखनवी हूं।' 'लेकिन लोग ये मानते नहीं हैं। हम अपने आपको जानते नहीं हैं।' 'कुछ लाइनें लिखी तो कवि बन गए। कवि सम्मेलन में पढ़ने से पहले सो गए।' 'लोग कहते हैं पागल है दीवाना है। कविताओं के चक्कर में मस्ताना है।' 'अभी ये जानता नहीं लगा ऐ कैसा जमाना है। लगता है इसका नहीं कोई आशियाना है।' 'जमाना कितना भी जलील करें मैं लिखूंगा।' 'जमाने से मुझे कोई डर नहीं ये लोग मुझसे जलते हैं। इसलिए मेरी कविताओं को अनसुना करके घर से निकलते हैं।' 'मैंने एक कविता पढ़ी तो लोगों ने तालियां बजाई। जैसे ससुराल से बहुत सी सालियां आई।' 'मुझे विश्वास नहीं ये लोग अपने हैं। कवि बनने के लिए देखे जो सपने हैं।' 'मुझे लगा कि मैं एक कवि बन गया। अपनी कविताओं की यादों में मैं खो गया।' 'मैं बहुत खुश था कि मुझे लोगों ने कवि बना दिया। मैंने सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया। 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh Kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohangan...

Jindagi ek safar

_ जिंदगी एक सफर "जिंदगी में मैंने देखे हैं बहुत से मेले, कभी मिठाई बेची, कभी चाट, तो कभी केले।" "जिंदगी को मैंने बहुत करीब से देखा है, इसलिए गमों को मैंने कर दिया अनदेखा है।" "जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव आए, कभी दुःख तो कभी सुख के बादल छाए।" "जिंदगी से लड़ता गया और जीता गया, लोगों को पड़ता गया और गमों को पीता गया।" "क्योंकि जिंदगी जीने का नाम है, दुःख के डर से आत्महत्या करना हराम है।" "जो लोग दुखों से कतराते हैं, अपनी जिंदगी पर नहीं इतराते हैं।" "दुखों के भंवर से कश्ती निकाल लेना जिंदगी है, ऐसे लोगों को करता सारा जमाना बंदगी है।" "मैं कहता ऐ दुनिया वालों जिंदगी को जीते जाओ, और जिंदगी के दुखों के जामो को पीते जाओ।" "जब तक जिंदगी है जीते जाओ......... जीते जाओ सारे दुखों के जामों को पीते जाओ........ पीते जाओ।" 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh Kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohanganj Ashapur Ruru, Amethi Publisher Om Tripathi Contact No. 930211...

Mehngai

_महंगाई हाय रे महगाई ये कैसी प्रतिबंध लगाई ।  अब तो कुछ नहीं मिलता है,  पहले मिलती थी घी, दूध, मलाई,  अब सभी चीजों ने ले ली हमसे रुसवाई मेरे पड़ोस में रहते हैं आलम भाई,  वो कहने लगे एक दिन अरे मुन्ना भाई ।  इस महंगाई ने तो कमर तोड़ दी ।  मेरे सारे खरचों का रुख मोड़ दी ,  एक समय था कि बच्चे खाते थे दुध मलाई ।  अब तो नसीब नहीं होती है नान खटाई। एक दौर हम लोगों का जमाना था  कि पाटी पे लिखा जाता था ।  लेकिन अब तो पाटी जल गयी ,  कापी पे लिख जाता है ।  कहने लगे मेरे पड़ोस के आलम भाई ।  अब सबके बस में नहीं करवा ले पढ़ाई ।  कहता है लेखक सुनो ए मेरे प्यारे भाई ।  अब मुझसे नहीं होगी कविता की लिखाई ।  क्योंकि अब खत्म हो गई है मेरे कलम में स्याही,   हाय रे महंगाई ये कैसी प्रतिबंध लगाई ।            👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh Kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohanganj Ashapur Ruru, Amethi Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115...

Ganga

_  गंगा की महानता ये गंगा करती है सबको नंगा ,  क्योकि गंगा बड़ी महान है ।  करते लोग इसमे स्नान है ।  गंगा सबके पापो  को धुलती है ।  इसी लिए तो गंगा सागर में मिलती है ।  गंगोत्री से निकली मैदानों में चली, सबके पापो और मैलो को समेटे चली ।  इसी लिए गंगा बड़ी महान है ।  इसके किनारे लाखों शमसान है ।  सबके पापों के धोने का साधन है ये ।  लाखों लोगों का मोहती मन है यें ।  गंगा के किनारे होते है बड़े -बड़े मेले | यहाँ नहाने आते है बहुत से अलबेले ।  उसके किनारे बहुत से बैठे है पड़े, इसी लिए लगे है यहाँ ऊंचे -ऊंचे झंडे ।  यहाँ पे सबका अलग - अलग निशान है ।  किसी का त्रिशुल तो किसी का तीर कमान है ।  यहाँ पे सबके अलग - अलग जजमान है ।  इसीलिऐ कहता हूँ कि गंगा बड़ी महान है । 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Dinesh kumar EDUCATION : ADDRESS :Mohanganj, ashapur ruru- Amethi Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद...