_पतंगबाजी
'शाम का वक्त था, मौसम बड़ा सुहाना था।
त्योहार का दिन था, लोगों को पतंग उड़ाना था।'
'रंग बिरंगी पतंगे कटती रहे, उड़ती रही, बढ़ती ही।
बड़ी देर तक इस नजारे को, मेरी आंखें देखती रही।'
'मुझे पतंग उड़ाने में जरा भी दिलचस्पी नहीं।
फिर समय था इसलिए नजरें देखती रही।'
'बड़ी देर तक हमने इन पतंगों का नजारा देखा।
बड़ा अच्छा लगा कि हमने एक दूसरे को काटते देखा।'
'कटी पतंग किस दिशा में जाएगी, इसका पता नहीं।
पतंग लूटने वालों का कहीं अता पता नहीं।'
'पतंग उड़ाने का लोगों का अजीब शौक है।
छत पर उड़ाते हैं तो मौत का नहीं खौफ है।'
'आज पतंग उड़ाने वालों का मैंने समर देखा।
पतंग लूटने वालों को कसते अपनी कमर देखा।'
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Poet
Dinesh kumar
Publisher
Om Tripathi
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Social Media Manager
Shourya Paroha
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