_गलियारे के कवि
'मैं कवि नहीं एक अजनबी हूं।
अपने आपको कहता लखनवी हूं।'
'लेकिन लोग ये मानते नहीं हैं।
हम अपने आपको जानते नहीं हैं।'
'कुछ लाइनें लिखी तो कवि बन गए।
कवि सम्मेलन में पढ़ने से पहले सो गए।'
'लोग कहते हैं पागल है दीवाना है।
कविताओं के चक्कर में मस्ताना है।'
'अभी ये जानता नहीं लगा ऐ कैसा जमाना है।
लगता है इसका नहीं कोई आशियाना है।'
'जमाना कितना भी जलील करें मैं लिखूंगा।'
'जमाने से मुझे कोई डर नहीं ये लोग मुझसे जलते हैं।
इसलिए मेरी कविताओं को अनसुना करके घर से निकलते हैं।'
'मैंने एक कविता पढ़ी तो लोगों ने तालियां बजाई।
जैसे ससुराल से बहुत सी सालियां आई।'
'मुझे विश्वास नहीं ये लोग अपने हैं।
कवि बनने के लिए देखे जो सपने हैं।'
'मुझे लगा कि मैं एक कवि बन गया।
अपनी कविताओं की यादों में मैं खो गया।'
'मैं बहुत खुश था कि मुझे लोगों ने कवि बना दिया।
मैंने सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया।
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Poet
Dinesh Kumar
Publisher
Om Tripathi
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Social Media Manager
Shourya Paroha
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