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अप्रैल, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Mahadev

  महादेव (कविता)  🛕🔱निज भक्ति से गुणगान करूं मैं ! अपने चरणों की धूल बना लो !!  🛕🔱सर की गंगा धार ना सही !  अपने त्रिशूल का फुल बना लो !!  🛕🔱सरल मन से जाप करूं और हो उजियारा तन में !  मुझको बाबा अपने माथे का वो चांद बना लो !! 🛕🔱प्रिय दोनों तुमको बाबा चाहों तो नन्दी बना लो ! चाहों तो गले का काला नाग बना लो !! हमसे जुडने के लिए👉 यहाँ click करें 👈 Poet Brijesh Kawar EDUCATION : ADDRESS :Kota, Rajasthan Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं। Social Media Manager Shourya Paroha अगर आप अपनी कविता प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप व्हाट्सएप नंबर 7771803918 पर संपर्क करें।

Thokhren

ठोकरें   ( मुक्तक)  ठोकरें तुझे गिरा नहीं सकती,     राहें कभी थका नहीं सकती।       लक्ष्य तक पहुँचने की ललक रख        मंजिल कभी डरा नहीं सकती। गुलाब का फूल काँटों में ही खिलता है,  सच्चा प्रेम बड़ी मुश्किल से मिलता है  तुझे एक-एक कदम रखना होगा फूंक-फूंक कर,  शाबाशी, धोखा अक्सर पीछे से ही मिलता है। गुलाब काँटों के साथ ही खिलता है,  तभी तो मुस्कुरा कर वो महकता है  बेटियाँ तुम भी बनके नश्तर जियो, जिन्हें तूफान भी उड़ा नहीं सकता है। काँटों को तू अपना साथी बना के चल,  रेत को निचोड़ ले तकदीर बनाके चल,              खुदा भी अगर तुझसे रूठा है तो क्या परवाह,                               खुद को तू खुद का ही मसीहा बना के चल। तमन्ना गर आसमां छूने की है तो मेहनत साथ लेकर चल,  पसीने की परवाह न कर रास्ता खोद दरिया बहाके चल।  जीवन सफर में कई उतार-चढ़ाव भरे र...

Ae Jindigi

  ए जिंदगी   ( मुक्तक)    ए जिंदगी तेरी कद्र पता चली आजमाने के बाद, जलना क्या होता है तिल-तिल सुलगने के बाद। हम तो सहरा-सहरा भटकते ही रह गए, होश आया मुट्ठी से रेत फिसलने के बाद। तन्हा चले तो रास्ता उदास न था, तेरी परछाइयों का भी साथ न था।, सिक्कों की खनक में मस्त हुआ है, वो मेरे साथ चला मगर साथ न था। कतरा-कतरा गिर कर रूह में उतर गया, जिंदा था फिर लाश हुआ मजार में बदल गया। जमीन सुलगने लगी आसमान जार-जार रोया, मेरा रकीब मैयत से मुस्करा के गुजर गया। बारिश ने मेरा नशेमन जला दिया, ठंडी फुहारों ने अंतर्मन झुलसा दिया। ए आँधियां तुम तो जरा ठहर जाओ, गुलशन ने मेरा आशियाँ मिटा दिया। सूरज मद्धम हो गया पता ही न चला, शाम कब ढलने लगी पता ही न चला। चरागे रोशन की कैसे कोई उम्मीद करे, शमा जिंदगी बुझने लगी पता ही न चला। थक कर बैठ गए अब चल नहीं सकते हैं, कारवाँ बिछड़ गया अब मिल नहीं सकते हैं। काश! इस जिंदगी की शाम अभी हो जाए,  चार काँधों के बिना मरघट जा नहीं सकते हैं। उनसे मुलाकात की कुछ वक्त गुजर गया, कोर का पानी छिपाने में निकल गया। कुछ उलझन समेट कर एक तरफ रख दी, जाने क्या...

Thokar

ठोकर   (मुक्तक)    जिसे ठोकर ना लगी वो मंजिल क्या जानेगा, गलत से पाला ना पड़े सही क्या पहचानेगा। भंवर में है कश्ती पार करने का जरिया क्या, पतझड़ के बाद बसन्त आता है कैसे जानेगा। लालच की फितरत देखो कम होता ही नहीं, इंसान की फितरत देखो वह सुधरता ही नहीं। अगर समझाने से ही लोग समझ जाते तो,           भाई-भाई में महाभारत युद्ध होता ही नहीं।  मालिक बने रहना यही इंसान की हस्ती है उसके कई मकान है गनीमत है कि बस्ती है दगा करना धोखा देना बुराई से सदा बचना  धोखेबाज का घर देखो वहाँ मौका परस्ती है  बुरा समय आया तो लोग बदल गए,  अच्छा समय आया लोग बदल गए। अच्छा बुरा समय सब निकल जाता है, सिर्फ याद रहे जो समय देख कर बदल गए।  उन्हें ढूँढ़िये जो सिर्फ आपकी फिक्र करते है, अहमियत समझिए उनकी जो प्यार करते हैं। इस्तेमाल करने वाले तो खुद आपको ढूंढ लेंगे, इज्जत दीजिए उन्हें जो आपके संग चलते हैं। सत्य शाश्वत है झूठ बदलता रहता हैं, पर्दे के पीछे कब रहस्य छिपा रहता हैं। सत्य को किसी सबूत की जरूरत नहीं,  झूठ बिना सबूत कब टिका रहता हैं।...

Raat ki Subah

रात की सुबह (कविता )    इस रात की सुबह  कब होगी इस रात की सुबह।  कब मिलेगा रूहे सुकून हर जगह।  कोरोना महामारी से त्रस्त है  सारी व्यवस्था।  बंद हो चुके हैं बच्चों की कॉपी और बस्ता।  कहीं कोई है भूखा और प्यासा।  कहीं ऑक्सीजन छीन रहा है सांसों की आशा।  चमन में चारों ओर छाई है उदासीनता।  मुरझाए फूल और हरियाली है खस्ता।  आतंक छाया है चारों ओर।  टूट रही है लोगों के जीवन की डोर।  चारों ओर हो रहा है त्राहिमाम त्राहिमाम।   जाने क्या होगा अब हमारा अंजाम।  कहीं कम है दवाइयां कहीं अस्पताल फुल।  क्या हो गई है मानवता से कुछ भूल।  पर इस रात की सुबह होगी जरूर।   यह बीमारी भी जाएगी हम सब से दूर।  बढ़ानी होगी हमें अपनी इच्छा शक्ति।  तभी होगी विजय और हमारी प्रशस्ति।  हाथों को  धुलना होगा बार-बार।  घर में ही रहकर करना है प्रहार।  मास्क लगाएं और दूरी बनाए हम।  अभी रखना है सब्र व संयम।  अभी करनी है दूर से मुलाकात।  तभी भविष्य में रहेंगे हम साथ साथ।  पुन...

Nafrate bhula do

नफरतें भुला दो (गीत)  नफरतें भुला दो गमे जिन्दगी है, खुशी कहाँ है उम्मीद बंदगी है। मैं हूँ अकेला तू भी अकेला, मेला यहाँ है पर सब अकेला, चार दिनों की मिली जिन्दगी है। आए जगत में कुछ अच्छा कर लें, सबको अपने गले से लगा लें, गिरते थामे यही तो खुशी है। भाई-भाई का दुश्मन बना है, प्यार दिलों से बिल्कुल फ़ना है, कैसे दुनिया धरा पर टिकी है। कुछ मैं जगाऊँ कुछ तुम जगाओ, सबके जहन से नफरत मिटाओ, प्रेम खुदा है प्रेम निशानी है। गले लगाओ अपनों को लोगो, मत दुत्कारो अपनों को लोगो, याद करें सब यही बंदगी है। प्यार से ज्यादा नफरत दिलो में, सब जल रहे हैं पल-पल पलों में,  "श्री" दुनिया प्यार की भूखी है।                               हमसे जुडने के लिए👉 यहाँ click करें 👈 Poet Sarita Shrivastav EDUCATION : ADDRESS : Dhoulpur, Rajasthan Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@p...

Jivan ka sangharsh

 जीवन का संघर्ष  (कविता)    जीवन में संघर्ष है प्रति पल।  तू उठ तू चल आगे बढ़ हर पल।  कोशिश करते रहो पल पल।  तभी निखरेगा आने वाला कल।  यदि बनना है झरनों का कल-कल।  चट्टानों में राह बनानी होगी सरल।   चीरना होगा पत्थरों का सीना सबल।  खिलाना होगा कीचड़ में कमल।  यदि खिलना है पुष्प सा सुगंधित।   सहनी होगी वर्षा व धूप अबाधित।  कांटो संग रहना होगा अविचल।  जीने का सिर्फ यही है हल।  रोज आएंगी आंधियां।  उड़ा ले जाएंगी आशियां।  फिर दिखाना होगा भुजाओं का जोर।  खड़ा करना होगा सपनों का महल।  पुनः आया कोरोना काल।  जरा तू अपने को संभाल।  मानने है सारे नियम।  करते रहना है नित् कर्म।  बीत जाएगा ये भी पल।  तू उठ तू चल आगे बढ़ हर पल। हमसे जुडने के लिए👉 यहाँ click करें 👈 Poet Vartika Dubey EDUCATION : ADDRESS :Phulpur, Prayaagraaj, U. P Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी म...

Koi baat nhi

  कोई बात नहीं (कविता)  दिल टूट गया कोई बात नहीं ।। हाथ छूट गया कोई बात नहीं ।। साथ छूट गया कोई बात नहीं ।। मैं राह तू राही कोई बात नहीं ।। मै रास्ता तू मंजिल कोई बात नहीं ।। मै बंदर तू मदारी कोई बात नहीं ।। में खेल तू खिलाड़ी कोई बात नहीं ।। तू आसमान मैं जमीन कोई बात नहीं ।। तू वफादार मैं बेवफा कोई बात नहीं ।। तू समन्दर मैं साहिल कोई बात नहीं ।। तू समझदार मैं जाहिल कोई बात नहीं ।। मैं हर जगह गलत तू हर जगह सही कोई बात नहीं ।। लेकिन एक वक़्त आएगा जब तू रोएगी और ना भी रोई तो कोई बात नहीं । हमसे जुडने के लिए👉 यहाँ click करें 👈 Poet Ashwani Tiwari EDUCATION : ADDRESS : Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं। Social Media Manager Shourya Paroha अगर आप अपनी कविता प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप व्हाट्सएप नंबर 7771803918 पर संपर्क करें।

Chand dekha to

चाँद देखा तो (गज़ल  )  चाँद देखा तो चाँद डूब गया, मेरा मुझसे कोई रूठ गया। पत्ता-पत्ता मुरझाया लगता है, कोई पत्ता शाख से दूर गया। तेरी खामोशी का सबब क्या है, क्या था तेरा तुझसे छूट गया। गुफ्तगू में मगन घटाएँ सभी, अंतर्मन भीगने से छूट गया। सितारों जमीन पर देखो कभी, घर कोई रोशनी से छूट गया। देने वाले तूने दिया सब कुछ,  मेरी किस्मत का जाम टूट गया। जाने वाले की याद बिखरी हैं, कैसे कह दूँ कि उसे भूल गया। कोई अजनबी गज़ल सुनाता है, ख्वाब आँखों से मेरी टूट गया। मौत के पैगाम पर दस्तखत करके, तेरी दुनिया में रहना भूल गया। आइना उठा के क्या देख लिया, शख्स कोई जिसे "श्री"भूल गया।  हमसे जुडने के लिए👉 यहाँ click करें 👈 Poet Sarita Shrivastav EDUCATION : ADDRESS :Dhoulpur Publisher Om Tripathi Contact No. 9302115955 आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं। Social Media Manager Shourya Paroha अगर आप अपनी कविता प्रकाशि...

Nya sabera

  नया सवेरा (कविता)  एक नये सवेरे को लेकर आया दिनकर।                         एक नई आशा उमंग को लेकर आया दिनकर । सोए हुए जग को ,जगाने आया दिनकर।                         अपनी किरणों की कालीनता से। अँधेरे जग को जगाने आया दिनकर ।                        अपनी कालीन किरणों से। अँधकार को प्रकाश की ओर ले आया दिनकर।                       अपनी रक्त भरी किरणों से। प्रकृति श्रृंगार करने आया दिनकर ।                        निर्धन और धनवान की जिन्दगी में। आशा लेकर आया दिनकर।                       मानवता के जीवन में , आलस्य भगाने आया दिनकर। पुष्पों और फलों को परिपूर्ण बनाने आया दिनकर ।               ...

Shayri

 शायरी (शायरी)  आशनों की महफिल में तेरी बातों का जिक्र आया  दर्पण उठाके देखा तो तेरा चेहरा नजर आया  खबर  नहीं थी इतने सस्ते में बिक जायेंगे   तूने मोहब्बत की बाजार में ऐसा भाव लगाया।    कुछ तो खास है तेरे दीदार में बार-बार ये आँखें तेरी ओर ही इशारा करती हैं । तेरी बेखुदी में हम खुद को भूला बैठे  तूने तो खैरियत को भी मंजूरी न दी । रुखसत तो मुझे भी लेनी है इस जहाँ से फर्क इतना है तेरी झलक से साँसों के  टूटने की रुकावट ना होगी।  तेरी बातों का सिलसिला यूँ 'मुसलसल' रहा  पर बेपनाह मोहब्बत का कहीं  जिक्र ही नहीं आया । तुझसे मिलने की ख्वाहिश तो 'मुकम्मल' न हुई  यादों की बारात में शेहरा दूने ही बाँधा।  वो 'फरियाद' भी रब से कैसी  जिसकी लकीरें इन हाथों में ही नहीं हैं। कितनी शिद्दत' से तुझको पाने की कोशिश की  पर किस्मत की कीमत खुद को ही चुकानी पड़ती है। एक बार की झलक ने तेरी सूरत का अंदाजा लगाया  बीते हुए लम्हों ने तुझे महसूस करना सिखाया  दीवानगी का जाम तब सर चढ़ के बोला  जब त...

Mere kridan bade surile

  मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं (कविता)  जिस रोज वैदेही के अंखियो से , मेरी जडों में जल प्रपात उठ आया , उस रोज प्रकृति ने भी। कुज वसुधा की पलटी काया।। मेरी पुत्री मेरी छांव में बैठी , ऐसे विलाप के गायन ज़रा नुकीले हैं।         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ पांचाली से मुझे हर लिया , सुष्म - बदन निर्झरणी को ॥ देख विप्लव मैं कलंकित हो गई , दुःशासन की करनी को ॥ पवित्र कलिंदी के गर्भ में भी, कुकर्म के विशाल टीले हैं,,         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ जब वैकुण्ठ भीगो के गोढ़ , बैठे चले मुझ पे तरणी में ॥ संग अनुज- सिया रखुबर पुर जाई , मन करे छंद भर दौड़ , चुम आऊँ आज चरणी मैं ॥           कब मिलिहो  चउदा बरस बाद ?? बिन तुमरे , हो गई अयोध्या भय - सूना काल।। मेरा व्योम चुरा लेगी रजनी ये!!...

Bhawani mata

 (भवानी माता) (गीत)  भवानी माता पहाड़ों से आई मेरे आंगन, जगदम्बा माता नौ दिन विराजे मेरे आंगन। शैलपुत्री देवी पहले दिवस में पधारी, आरोग्य आशीष वरदान संग पधारी, चरणों में गऊ घृत अर्पण करूँ मेरे आंगन। ब्रह्मचारिणी माता दूजे दिवस में आई, चिरायु आशीष संग में लेकर माँ आई, शकर के भोग से हुई प्रसन्न मेरे आंगन।  चंद्रघंटा मैया तीजे दिवस में विराजी, मन इच्छा पूरी करने को है मैया राजी, पायस का भोग तुझको जिमाऊँ मेरे आंगन।  कूष्मांडा देवी चौथे दिवस में आई, रोग शोक मेरे नष्ट करने को आई, मालपुए अपने हाथ खिलाऊँ मेरे आंगन। स्कंदमाता पंचम दिवस में पधारी, सिद्धि देने माँ मेरे भवन में पधारी, केले के भोग से हुई प्रसन्न मेरे आंगन।  कात्यायनी मैया छठवें दिवस घर आई, आकर्षण देने सुन्दर बनाने चली आई, शहद का भोग भेंट करूँ मेरे आंगन।  कालरात्रि देवी सप्तम दिवस में आई, रोगों से मुक्ति देने को माँ चली आई, मीठे के भोग से मैया प्रसन्न मेरे आंगन।  महागौरी देवी आठवें दिन घर आई, असंभव कार्य करने तुरन्त चली आई,  नारियल का भोग हाथ खिलाऊँ मेरे आंगन।  सिद्धिदात्री मैया न...