ठोकर
(मुक्तक)
जिसे ठोकर ना लगी वो मंजिल क्या जानेगा,
गलत से पाला ना पड़े सही क्या पहचानेगा।
भंवर में है कश्ती पार करने का जरिया क्या,
पतझड़ के बाद बसन्त आता है कैसे जानेगा।
लालच की फितरत देखो कम होता ही नहीं,
इंसान की फितरत देखो वह सुधरता ही नहीं।
अगर समझाने से ही लोग समझ जाते तो,
भाई-भाई में महाभारत युद्ध होता ही नहीं।
मालिक बने रहना यही इंसान की हस्ती है
उसके कई मकान है गनीमत है कि बस्ती है
दगा करना धोखा देना बुराई से सदा बचना
धोखेबाज का घर देखो वहाँ मौका परस्ती है
बुरा समय आया तो लोग बदल गए,
अच्छा समय आया लोग बदल गए।
अच्छा बुरा समय सब निकल जाता है,
सिर्फ याद रहे जो समय देख कर बदल गए।
उन्हें ढूँढ़िये जो सिर्फ आपकी फिक्र करते है,
अहमियत समझिए उनकी जो प्यार करते हैं।
इस्तेमाल करने वाले तो खुद आपको ढूंढ लेंगे,
इज्जत दीजिए उन्हें जो आपके संग चलते हैं।
सत्य शाश्वत है झूठ बदलता रहता हैं,
पर्दे के पीछे कब रहस्य छिपा रहता हैं।
सत्य को किसी सबूत की जरूरत नहीं,
झूठ बिना सबूत कब टिका रहता हैं।
सत्य शाश्वत है फिर भी मात खाता है,
झूठ के दलदल में फंसकर रह जाता है।
राख के ढेर में दबी चिंगारी राख हो जाती है,
झूठ सबूतों के साथ और गहरा हो जाता है।
तलाशिए उसे जो आपसे नफ़रत करता हैं,
ढूंढिए उसे जो आपको जख्म देता हैं।
पेड़ से कटी डाली क्या कभी छाया देती है?
दर्द ही सही वह तुम्हें याद तो करता है।
झूठे व्यक्ति को लोग पसन्द करने लगे हैं,
जरा सा सच क्या कह दिया रूठने लगे हैं
जिंदा लोगों की चुगलियाँ करते हैं लोग।
मरे हुए की तारीफों के पुल बाँधने लगे हैं।
इंसान अपना स्वार्थ सबसे ऊपर रखता है,
ईश्वर से रिश्ता भी स्वार्थ के लिए रखता है।
21 रुपये का प्रसाद ही चढ़ाता है मंदिर में,
किन्तु वह लालसा पूरी कायनात की रखता है।
सपनों को चकनाचूर होते हुए देखा है,
एक-एक पाई का मोहताज होते देखा है।
अगर हमने रिश्तों को अहमियत नहीं दी तो,
अहम के बीच से रिश्ता दूर निकलते देखा है।
सब कुछ तेरे बगैर वीरान सा लगता है,
महफिल में भी तन्हाई का आलम लगता है।
अपना मिजाजे हाल किसी को क्या बताएं,
अब तो अपना चेहरा भी बेगाना सा लगता है।
पेड़ से गिरा पत्ता सूख जाता है,
जमीन से जुड़ा इंसान तरक्की पाता है।
हवाई किले बनाने वाला इंसान,
नाकारा होकर हवा में बिखर जाता है।
निर्रथक बात कहना एक अवगुण है,
चुप रहना कोई कमजोरी नहीं गुण है।
क्योंकि एक चुप सौ को हराती है,
हमारे पास लिहाज रूपी संस्कार गुण है।
तन्हाई में कभी-कभी उससे भी मिलते हैं,
फुर्सत के कुछ क्षण उसे भी दिया करते हैं।
उसी के ही अस्तित्व की परछाई हैं हम,
जिसे हर रोज आइने में देखकर चलते हैं।
निराश मत हो मंजिल मिल ही जाएगी,
मेहनत कर राहें आसान हो जाएगी।,
जितनी काली अँधियारी रात होगी,
सुबह उतनी ही सुनहरी हो जाएगी।
होठों की मुस्कान दिल का दर्द छुपाती है,
बातों की मिठास मन का भेद छुपाती है।
सुख-दुख हथेली में ढूंढ कर देखो साथियो,
मिलेगा वही जो किस्मत की लकीरें छुपाती हैं।
आँख में नमी दिल का दर्द बयां करती हैं,
रिश्तों की गहराई अहमियत बयां करती है।
रिश्ते माला का एक-एक कीमती मोती है,
आजकल टूटकर बिखरने में देर नहीं लगती ह।
बहुत चाहते हैं सब मुझको मेरी परवाह करते हैं,
बहुत अजीज हूँ उनका वो मेरी राह तकते हैं।
मैं जरूरत हूँ उनकी मुझसे ही घर चलता है,
मेहरबानी मुझपर नहीं मेरे पैसे पर करते हैं।
अँधेरे में खड़ा एक ठूंठ तन्हा उदास सा,
भरा पूरा घर है फिर भी मन उचाट सा।
कहने को तो वह मेरा हमसफर ही है,
सिर्फ जरूरत कहाँ कोई अहसास सा।
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