शायरी
(शायरी)
आशनों की महफिल में तेरी बातों का जिक्र आया
दर्पण उठाके देखा तो तेरा चेहरा नजर आया
खबर नहीं थी इतने सस्ते में बिक जायेंगे
तूने मोहब्बत की बाजार में ऐसा भाव लगाया।
कुछ तो खास है तेरे दीदार में
बार-बार ये आँखें तेरी ओर ही इशारा करती हैं ।
तेरी बेखुदी में हम खुद को भूला बैठे
तूने तो खैरियत को भी मंजूरी न दी ।
रुखसत तो मुझे भी लेनी है इस जहाँ से
फर्क इतना है तेरी झलक से साँसों के
टूटने की रुकावट ना होगी।
तेरी बातों का सिलसिला यूँ 'मुसलसल' रहा
पर बेपनाह मोहब्बत का कहीं जिक्र ही नहीं आया ।
तुझसे मिलने की ख्वाहिश तो 'मुकम्मल' न हुई
यादों की बारात में शेहरा दूने ही बाँधा।
वो 'फरियाद' भी रब से कैसी
जिसकी लकीरें इन हाथों में ही नहीं हैं।
कितनी शिद्दत' से तुझको पाने की कोशिश की
पर किस्मत की कीमत खुद को ही चुकानी पड़ती है।
एक बार की झलक ने तेरी सूरत का अंदाजा लगाया
बीते हुए लम्हों ने तुझे महसूस करना सिखाया
दीवानगी का जाम तब सर चढ़ के बोला
जब तेरी कशिश भरी बातों ने असर ढाया |
तेरी आशिकी में डूबने के लिए बस एक जाम काफ़ी था
अंदाजा हमें ही नहीं हुआ कि उसमें नशा कितना है।
मोहब्बत उनको भी है पर जताने की फुरसत कहाँ
इंतज़ार हमें ही रहता है तेरी चाहतों के पैगाम का।
तुमसे ही कुछ 'गुफ्तगू' कर लिया करते हैं
वैसे तो उदासियों का शैलाब है ये जिन्दगी।
मोहब्बत के बाजार में जब बिकने को तैयार हुए
उनकी चाहतों का तो मौसम ही बदल गया ।
'राब्ता' तुझसे जो भी होहो
जब लग गये दिल से
तो दीवानगी की वजह कौन पूछे ।
तेरी नजाकत की क्या तारीफ करूँ
तू शीरतों का समन्दर जो ठहरा।
इश्क तो वो रिस्क है जनाब
हो जाने पर सूरत और मजहब नहीं पूछता।
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Publisher
Om Tripathi
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Shourya Paroha
Nice
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