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Mat Poochh



_ मत पूछ

Poem by Monika Manvi


घाव पुराना था रक्त ने बहना छोड़ दिया,
आंख फिर भी नम थी आंसुओं का ठिकाना न रहा।
दर्द आज भी था धड़कनों ने हिसाब ले रखा था,
फिर अचानक आवाज आई कही किसी ओर से।
बोल क्या तेरे कर्मों की सजा यही है,
खुश तो नहीं होगा तू पता मुझे है।
आज तू पड़ा है मानो कोई तुझसा नही,
कौन कहेगा तुझे कितना गुनाहगार है तू।
मुझे पता है तू पश्चाताप कर रहा,
मगर क्या पता है तुझे वह भी तुझसा बन रहा।
क्या उस दिन खुद से नजरें मिला सकेगा,
जब उसके अंदर खुद की रूह पायेगा।
बड़ा भोला था मगर कभी तुझसा नहीं,
कभी नफ़रत करता था जो तेरे शब्दों से।
आज वही अपने होठों से तेरे बोल बोल रहा,
उसे एहसास नहीं मगर कुछ तो गलत कर रहा।
आज वह भी तेरी तरह अपनों को खो रहा,
कभी जो उसकी दुनिया थी जिसे पलकों पर बिठाया था।
जिसके न होने से उसे हर शख्स पराया था,
जिसकी मुस्कान उसके लिए दवा का काम करती थी।
अब उसके मरने की हर रोज़ दुआ मांगता है,
तेरी तरह वह भी उस पर हाथ उठाता है।
आंख दिखा कर उसे डराना चाहता है,
फ़र्क इतना है बस कि इंसान अलग है।
मगर आज भी उसमें रूह तेरी है,
रोती है मगर उसकी परवाह करती है।
आज भी तेरी सेवा उसका मान करती है,
तुम दोनों ने उस पर कितने जुल्म क्यों न किए।
मगर आज भी वह तुम्हे अपना समझती है,
परायों के इल्ज़ाम सह घाव तुम्हारे भरती है।
आज भी दूर रहकर याद तुम्हे करती है,
वह भी पछताएगा मगर तेरी तरह ही विकल्प नहीं होगा।
तेरी तरह उसका भी जीना मरना आसान नहीं होगा,
कुछ तो बोल अब क्यों वक्त गवां रहा।
वह भी पछताए क्या तू नहीं चाह रहा,
मत पूछ तूने क्या खोया क्या पाया है।
भूल मत तूने जो बोया उसे काटना है,
आज तू परेशान मगर मैं हैरान हो रही हूं।
भला यह सब देख तू कैसे जी रहा है,
 मुझे पता है तू मुक्ति चाह रहा है। भले ही बीज तेरे हो मगर उसने सींचा है,
जाने दे दे खुदा उसके लिए एक फरिस्ता भेज रहा है।
  

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Monika Manvi

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टिप्पणियाँ

  1. बेनामी7:22 pm

    Gahrai hai aapki kavita me

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी7:04 pm

    Very very nice 👍

    जवाब देंहटाएं

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