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मै ठोकर खाता पत्थर हूँ



मै  ठोकर खाता पत्थर हूँ  ,  तुम अडिग खडी़ चट्टान प्रभू  ॥ 
मै धरती का इक रहवसी हूँ  , तुम तीनों भवनों के नाथ हरि  ॥
मै माया से जकडा  प्राणी हूँ   , तुम माया पति भगवान हरि  ॥
जो भक्त तुम्हारा होगा हरि    , माया उसको न व्यापेगी   ॥ 
तुम हो साकार  , तुम निराकार  , तुम ही आदि अनंत प्रभू  ॥
हे बृह्मा -विष्णु- महेश सुनों  , है मेरी विनती अब तुम सब से  ॥
ऐसे लोगों को समझाओ  ,जो करते हिंसा की बात हरि  ॥ 
युध्द से भला किसी का  न हो पाया है , इस अग्नि मैं दोनों दल ने कुछ न कुछ गवाया है  ॥ 
मेरी अतिंम विनती है प्रभू आपसे  , हिंसा वाली प्रथा मिटा  जाओ  , और मानव को मानवता का पाठ पढा जाओ  ,॥ 



                       Written and posted by                    -Om Tripathi

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