मै ठोकर खाता पत्थर हूँ , तुम अडिग खडी़ चट्टान प्रभू ॥
मै धरती का इक रहवसी हूँ , तुम तीनों भवनों के नाथ हरि ॥
मै माया से जकडा प्राणी हूँ , तुम माया पति भगवान हरि ॥
जो भक्त तुम्हारा होगा हरि , माया उसको न व्यापेगी ॥
तुम हो साकार , तुम निराकार , तुम ही आदि अनंत प्रभू ॥
हे बृह्मा -विष्णु- महेश सुनों , है मेरी विनती अब तुम सब से ॥
ऐसे लोगों को समझाओ ,जो करते हिंसा की बात हरि ॥
युध्द से भला किसी का न हो पाया है , इस अग्नि मैं दोनों दल ने कुछ न कुछ गवाया है ॥
मेरी अतिंम विनती है प्रभू आपसे , हिंसा वाली प्रथा मिटा जाओ , और मानव को मानवता का पाठ पढा जाओ ,॥
Written and posted by -Om Tripathi
Bhot khub
जवाब देंहटाएं𝒾𝓃𝓉𝓇𝓊𝓈𝓉𝒾𝓃ℊ
जवाब देंहटाएंAchi h bhai cool
जवाब देंहटाएंTune bnai
हटाएंThanks
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हटाएंbhot khub
जवाब देंहटाएंNice bhai
जवाब देंहटाएंTq
हटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar
जवाब देंहटाएंBahut accha hai sir
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