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जुलाई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Chand

_ चाँद चाँदनी रात मे चाँद कि याद मे , कागज कलम लिए बैठा था मैं , सवाल था खुद से कि , क्या लिखु  और कहां से शुरूआत करू मे ? ख्वाबों से, हकिकत से, या करू पहली मुलाकात से, तेरी रेशमी बालों से या माथे कि बिंदिया  से , तेरी छोटी सी मुस्कान से या तेरे नन्हें   होठों से। तेरी मोती सी आंखों से या गुलाबी गालो से , तेरी मीठी सी आवाज से, या तेरे मोर पंख के झुमके से। तेरी मटकती चाल से या दौड़ भाग कि मस्ती से , तेरे प्यार भरे हेलो से या मखमल जैसे हाथो से। सोचता रहा , सोचता रहा, ख्यालों  मे खो गया मैं , कलम हाथ से गिर गई , कागज उड़ गया हवा मे। मेरे सपनों कि  रानी सपनों मे खो गई , ख्वाब , ख्वाब ही रह गया और नीदं टूट गई। 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Neelkamal Malviya EDUCATION : ADDRESS :

Kahani

_ उस रात जब भी मै सोई  31december 2021.  2pm  क्या पता था कि तुम मुझे फ़िर मिलोगे, मैं बेखबर इस बात से कुछ तारो को गिन अपनी आँखें  बंद करने ही लगी, कि एक बून्द मेरी आँखो पर  आ  गिरी  मेरा मन एकदम से धुल गया पर इस चन्दनी सी रात और तारो से भरे इस आसमान पर बदलो का नामो निशान नहीं था, फ़िर ये नन्ही सी बून्द (हाए ) इतना कहकर  मैं सो गई  तकरीबन रात 2बजे मेरा फोन रिंग हुआ, मैने आँखें खोली और आँखो पर अपने हाथ मलते हुए फोन उठाया   तो देखा arjun दिल्ली  उस समय हल्की ठंडी हवा मेरी आँखो को  सुकून दे रही थी, पर मुझे क्या पता था ये हवा मेरे अतीत का वो हिस्सा अपने साथ लाई है  जिसे मैने कई सालो पहले  "दिल्ली के उस शहर की गली मे छोड़" लखनऊ की गलियों मे आके खुद को रोज थोड़ा थोड़ा मिटाती रही रोज खुद को भुलाती  रही  मै अभी इन खयालो से निकली भी नहीं  कि  फोन के दूसरे तरफ़ से एक अफ़सोस भरी अवाज मे मुझे मेरा नाम सुनाई दिया " इशानी "मै एकदम से मर सी गयी उस वक़्त के लिए. और क्यो ? लोगो को अपने मन का ही करना होता है...

Kabhi kabhar

_ कभी कभार मे उसके शहर कभी कभार मे उसके शहर, कभी कभार वो मेरे गाँव आया करती थी  हमारे बीच जो फ़सला रहा वो नदी बहुत इतराया करती थी  मे गाँव का वो शहर की, उसकी माँ ये उसे पढ़या करती थी  वो रहती थी पक्के मकानो मे ,और मेरे घर को बरिश भिगोया करती थी, घबराती नहीं वो हिम्मती बहुत है अपने अंचल से बून्दे छिपया करती थी  कभी कभार मै उसकी जुल्फ़े ,कभी कभार वो मेरे माथे के बालों को सहलया करती थी  मै गर्म दोपहरॊ मे तपता रहा. वो सरसो के फूलो मे मुस्कुराया करती थी मै खेत की माटी मे रंगता रहा, वो ओसो से मुझको नेहलया करती थी  कभी कभार मै उसकी बाते ओर कभी कभार वो मेरी हाँ मे हाँ मिलया करती थी  वो शहर की समझदार लड़की मेरे नाम का कुमकुम लगया करती थी  मुझ देहाती गवार को देशी छोरा बता के अपनी सहलियो से मिलवाया करती थी  हाँ वो लड़की कभी कभार मेरे गाँव आया करती थी 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Nirmala Rawat EDUCATION : ADDRESS :

keh do ki chaand

_ कह दो  की चाँद कह दो की  चाँद  हमारा नही है , इस दुनियां से नाता गवारा नही है   मै मर तो गई थी उस रात मगर , अभी उसने मुझे दफनया नही है,  ये दिल ये जिस्म ये रूह है उसकी , अभी उसने मुझे भुलाया  नहीं है   बरिश कि बून्दे क्या कहती है   भला ,अभी उसने मुझे कुछ सुनाया नही हैै , तुम ठहरो, तुम ठहरो, तुम ठहरो जरा , अभी उसने मुझे सीने से लगाया नही है 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet  Nirmala Rawat EDUCATION : ADDRESS : Lucknow

गैरसैंण

हॉस्पिटल से वंचित उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण मेरा नाम मोनिका खत्री है। मेरी जन्मभूमि खत्रीयाणा है, मुझे गर्व है अपने जन्मभूमि पर खत्रीयाणा गांव एक पहाड़ी गांव है,जो की उत्तराखंड के चमोली जिले के गैरसैंण क्षेत्र में पड़ता है। गैरसैंण नाम पड़ कर काफी लोग जान गए होंगे कि यह नाम जाना पहचाना है। हां जी सही पड़ा आपने में गैरसैंण की ही बात कर रही हूं, जो की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। यहां हर चीज की सुख सुविधा तो उपलब्ध कराई जा रही है,लेकिन लोगो को जिस चीज की यानी हॉस्पिटल की अत्यधिक  जरूरत है,उसका आज भी दूर_दूर तक कोई नाम नही, पहाड़ के लोग बहुत साधारण होते है,उन्हें सरकार के यह आलिशान भवन और चका_चौदं से कोई मोह नही है, वहां के लोग अपने पहाड़ों में बहुत खुश है। गैरसैंण में लगभग 200+ गांव है जिन्हे हर रोज इस समस्या से जूझना पड़ता है,और अपने परिजनों को लेकर 50 से 100km हर रोज सफर करना पड़ता है। लोगो की आधी उम्र गुजर गई अपने नजदीकी में अच्छे हॉस्पिटल को देखने के लिए। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है,मेरी मौसी की तबियत अचानक खराब हुई वहां नजदीकी में अच्छे अस्पताल ना होने के कार...