गैरसैंण सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गैरसैंण


हॉस्पिटल से वंचित उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण




मेरा नाम मोनिका खत्री है। मेरी जन्मभूमि खत्रीयाणा है, मुझे गर्व है अपने जन्मभूमि पर खत्रीयाणा गांव एक पहाड़ी गांव है,जो की उत्तराखंड के चमोली जिले के गैरसैंण क्षेत्र में पड़ता है। गैरसैंण नाम पड़ कर काफी लोग जान गए होंगे कि यह नाम जाना पहचाना है। हां जी सही पड़ा आपने में गैरसैंण की ही बात कर रही हूं, जो की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। यहां हर चीज की सुख सुविधा तो उपलब्ध कराई जा रही है,लेकिन लोगो को जिस चीज की यानी हॉस्पिटल की अत्यधिक  जरूरत है,उसका आज भी दूर_दूर तक कोई नाम नही, पहाड़ के लोग बहुत साधारण होते है,उन्हें सरकार के यह आलिशान भवन और चका_चौदं से कोई मोह नही है, वहां के लोग अपने पहाड़ों में बहुत खुश है। गैरसैंण में लगभग 200+ गांव है जिन्हे हर रोज इस समस्या से जूझना पड़ता है,और अपने परिजनों को लेकर 50 से 100km हर रोज सफर करना पड़ता है। लोगो की आधी उम्र गुजर गई अपने नजदीकी में अच्छे हॉस्पिटल को देखने के लिए। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है,मेरी मौसी की तबियत अचानक खराब हुई वहां नजदीकी में अच्छे अस्पताल ना होने के कारण वह अपने  छोटे_छोटे बच्चो को अपने परिजनों के पास छोड़कर और पशुओं को गांव में किसी के पास छोड़कर हमारे पास आ गई। वह क्या है ना हॉस्पिटल के हालत कैसे है, वहां के हर व्यक्ति को पता है। न जाने कितनी अर्जिया सरकार को लिखकर भेज दी उन मासूमों ने अब लोगो के हाथ थक गए सरकार को चिट्ठीया लिखते_लिखते क्योंकी उन्हें अब मालूम हो गया की हमारी यह सारी कोशिशें किसी सरकारी दफ्तर के रजिस्टर के अंदर किसी कोने में पड़ी है जिसे कभी कोई खोलकर देखना ही नही चाहता। जो सरकार से उन्हें बहुत सारी उम्मीदें थी, वह उम्मीदें उनकी धीरे_धीरे टूट चुकी है। और बात यही खत्म नही होती है,आज बात मेरी अकेले की मौसी की नही है ,गैरसैंण क्षेत्र के हर घर में दादा_दादी,माता_पिता, काका_काकी है, जो इस समस्या को लेकर कई सालो से बहुत परेशान है, यहां तक कि बहुत से मासूमों ने अपने  परिजनों को अपने आखों के सामने मरते हुए देखा है। क्योंकी उन लोगो के आस_पास कोई भी ढंग का हॉस्पिटल उपलब्ध नहीं है, पता नही यह सब कब तक चलता रहेगा, कब तक हमारे लोगो को यह सब असुविधाएं झेलनी पड़ेगी। पहाड़ के लोगो को सरकार से ज्यादा कुछ नहीं, बस इतना मिल जाए की सही समय पर वहां के लोगों का इलाज हो जाए उनको इतनी दूर अपना घर छोड़कर और बच्चो को छोड़कर ना जाना पड़े।। 

(धन्यवाद)
             

 मोनिका खत्री
चमोली (गैरसैण)

👉हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें👈

Poet

 Monika Khatri

EDUCATION :
ADDRESS :







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Ummeede

_   उम्मीदें उम्मीदें इस जहाँ में बस ख़ुदा से रखना तुम साबरी इंसान कभी किसी के साथ वफ़ा नहीं करते। जो क़ैद कर ले किसी को अपनी यादों में, तो मरने तक उनको उस यादों से रिहा नहीं करते। रूह से इश्क़ करना ये बस ख़्वाबों-ख़यालों  फिल्मों में सुन रखा होगा सबने, हक़ीक़त में इस जहाँ में लोग बिना जिस्म के इश्क़ का सौदा नहीं करते। वादे करके भूल जाना तो इंसान की फ़ितरत है। यहाँ वादे ख़ुदा से भी करके लोग पूरा नहीं करते। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Chitthi

  चिट्ठी (कविता)  लिख कर चिट्ठी भेज रही हु भगत सिहं तुझे बुलाने को ,  1 बार फिर आ जाओ अपना देश बचाने को ।  छोटे छोटे बच्चे भुखे रोते रोज सीमा पर शहीद सैनिक होते  भारत मॉं पर हमले पाक चीन के होते  देश हथियाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को।  रोज नए नए गठबन्धन होते नए नए नेताओ के संगम होते ,  गद्दार सब काले धन पर सोते आराम फरमाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ना एकता लोगो मे आयी, भाई ने भाई की जान गवायी ,  और सरकार ने करवाई लडाई दंगे भडकाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  गरीबो का होता शोषण हो रहा अमीरो का पोषण ,  सरकार दे रही झूठा भाषण वोट बनाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  हम भारत के वासी हमारा ना ईश्वर ना कैलाशी ,  सब कुछ बस भारत मॉँ कहलाती ,  आ जाओ पाक चीन का दिल दहलाने को,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ये देश ही मेरी पूजा है, भगवान है ,  शबगा है गाँव मेरा और भारती मेरा नाम है ,  मै प्रेम भाव से लिखू कविता ,  भारत के सपने नये सजाने को ,  आ जा...

Mere kridan bade surile

  मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं (कविता)  जिस रोज वैदेही के अंखियो से , मेरी जडों में जल प्रपात उठ आया , उस रोज प्रकृति ने भी। कुज वसुधा की पलटी काया।। मेरी पुत्री मेरी छांव में बैठी , ऐसे विलाप के गायन ज़रा नुकीले हैं।         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ पांचाली से मुझे हर लिया , सुष्म - बदन निर्झरणी को ॥ देख विप्लव मैं कलंकित हो गई , दुःशासन की करनी को ॥ पवित्र कलिंदी के गर्भ में भी, कुकर्म के विशाल टीले हैं,,         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ जब वैकुण्ठ भीगो के गोढ़ , बैठे चले मुझ पे तरणी में ॥ संग अनुज- सिया रखुबर पुर जाई , मन करे छंद भर दौड़ , चुम आऊँ आज चरणी मैं ॥           कब मिलिहो  चउदा बरस बाद ?? बिन तुमरे , हो गई अयोध्या भय - सूना काल।। मेरा व्योम चुरा लेगी रजनी ये!!...