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Gram shashan

_ ग्राम्य शासन



ग्राम्य चौपाल में 
सरकारी जर्जर भवन 
बिना दीवारों के घर सा खंडहर है 
देखते हैं, अधिकतर 
चालाक लोग हुकूमत के मुँह-लगवा होते हैं 
शेष बचे लोग सियासत में नुकीले कील से डरते हैं 
उनको ऐसा लगता है कि----
प्रजा-तंत्र में राजा का विरोध दंडनीय माना जाता है 
प्रतिरोध का सौदा घाटा का होता है 
कई बार मुनाफे में विरोध का स्वर लझबझा जाता है 
खैर,,
आइए ग्राम्य-स्वराज की थोथी ग्रामसभाओं में विकास का षडयंत्र गढते हैं 
आइए कुछ करते हैं 
आइए कुछ करते हैं 

                          

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Poet

 Vikrant Kumar 

EDUCATION :
ADDRESS :Begusharay, Bihar




Publisher

Om Tripathi

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