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Bhookh

 

_भूख



भूख लगी है मां कुछ तो खाने को दो राशन के पैसे अब तो लाने को दो भूख अब सहा नहीं जाता हैं
मां अब कुछ कहा नहीं जाता रसोई में कुछ रखा हो तो लाके दो खाली डिब्बों मे चिवड़ा झाड़ के दो
पेट में चूहे दौड़े है भूख सहने में आंसू पोछे है
हाय हाय क्या नसीब है समाज में अब भी गरीब लोग है

Amrita tripathi

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Poet

Amrita tripathi

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टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही मधुर कविता लिखा है आपने , आपका कोई जवाब नही 🥰👌

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