_भिक्षुक
गरीबी तोड़ देती जो रिश्ते खास बने होते हैं पराए अपने बन जाते हैं जब पैसे पास में होते हैं
रिश्ते नाते सब कुछ बेचकर खाता है इंसान पेट की आग बुझाने के लिए दर दर डगमगाता है इंसान भिक्षुक बनकर दर दर भटकता है दो मुट्ठी चावल कि खातिर पेट पालने की खातिर
आखों में आशा की किरण लेके हाथों में दया का पात्र सबके आगे झुकता है बेहाल
विधाता ने कैसे हाथो की लकीरें बनाई कैसे बना दिए हैं भाग्य इस तकदीर के रंग अजीब है भिक्षुक सोचता है दिन रात
कोई उसकी मर्म व्यथा को दूर कर दे कोई उसकी अंधेरी रात में जुगनू की तरह उजाला भर दे
जैसे सुदामा के घर आए थे घनश्याम
Amrita tripathi
👉हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें👈
Publisher
Om Tripathi
Contact No. 9302115955
आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं।
आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं।
Social Media Manager
Shourya Paroha
अगर आप अपनी कविता प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप व्हाट्सएप
नंबर 7771803918 पर संपर्क करें।
Very good 👍 bahan
जवाब देंहटाएंBadhiya hai sister
जवाब देंहटाएं