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Vakt

_ वक्त.   

Poem by Ramesh kumar Dwivedi


 यहि वक्त कै होत विचित्र गती,

 कबौ ठीक चलै कबौ ठीक नहीं।।

 सदी बीसवीं याद करी कछु तौ,

 कश्मीरनु हालि जो ठीक नहीं ।। 

 उन्नीसु जनौरी यही दिन था,

 जौ वदवक्त बयारि बही।। 

 लाज लिहाज ठिकानों छुट्यौ, 

 विधिना ऊ बयारू विचित्र रही।। 

 वक्त हटा सरकारू हटी, 

 कश्मीरु कै हालि पुरानि नही।। 

 जमीन वही जो कि स्वर्ग रही, 

 केसर कश्मीरु बखानु कही।। 

 मनुष्य नहीं बलवान कबौ, 

 बस वक्त सदा बलवान रहा।।

 अर्जुन भी वही लंकेश वही, 

 यहय चंचल वक्त बखानु कही।।

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Poet

Ramesh kumar Dwivedi

EDUCATION :
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Publisher

Om Tripathi

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