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ठूँठों का श्मशान .......



जाने कितनी रातें बीत गई 

ये मन कितना वीरान है 

हो रहा प्रतीत ललकारता 

मेरे समक्ष,

       आज ठूँठों का श्मशान है ॥


घोर संझा के गहरे ज़हन में

सोया सारा जहान है 

ये गूँगी इमारतें - शून्य वादियाँ 

ये बड़े लोगों का संसार है 

घट रहीं हैं साँसें हर तरफ ,

           ये ठूँठों का श्मशान है ।।


याद है मुझे मेरा गाँव  .........

जहाँ हर दिन नया पैगाम है 

वहाँ औकात से नही,

पिता से जाना जाता नाम है ।

काश हर जगह ऐसी होती तो ना होता आज, 

            ये ठूँठों का श्मशान है।। 

कवियित्री - नेहा यादव ( xth A )

RPVV IP ExtN. New Delhi 110092




टिप्पणियाँ

  1. Nandini7:37 pm

    Ap bohot achha likhe ho��❤️

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  2. Hardik7:40 pm

    नेहा जी आपकी कविताऐं तो बेमिसाल हैं ही , साथ ही आपकी मुस्कुराहट भी बहुत सुन्दर हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आप की टिप्पणी अछी है

    जवाब देंहटाएं
  4. Monika10:28 am

    Neha meri jan tu hmesha hi kamal h��keep it up

    जवाब देंहटाएं
  5. Shruti10:32 am

    Neha apki kavitaye bohot achhi lgti h mujhe ....me ap se ek bar milna chahti hu

    जवाब देंहटाएं
  6. Preeti Panwar9:41 pm

    Bhut Sundar Kavita hai Neha aapme bhut kshamta hai,aap bhut unchi udaan bharengi .Best of luck

    जवाब देंहटाएं
  7. Shashank4:50 pm

    Bohot hi achhi kavita likhi h apne neha ji .....Your smile is really beautiful

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Savita mehra4:54 pm

      Beta apme ek bohot bda talent h best of luck .....may god bless you always��

      हटाएं
  8. Shagun pathak9:29 am

    Very nice sister....all the best

    जवाब देंहटाएं
  9. Aakdam meri motu ki tarah likha hai😭yaad bhut aati hai uski...wese aap ke andar bhut achaa talent hai, apko apni skills or polish karni chahiye aap bhut aage jaoo ge👌

    जवाब देंहटाएं

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