निराशा मे आशा
सफलता की राह में,
पुनः निराश हो गए हैं हम ।
सागर के किनारे पहुंँचकर,
फिर से प्यासे रह गए हैं हम |
धुंधला - धुंधला है ये जमी आसमान
लगता है जैसे अधेरों में खो गए हैं हम।
पर अपने की आशाओं पर
खरा उतरने के लिए - - - - - - - -
हमको चलना ही होगा,
दोगुने जोर हमको लड़ना ही होगा।
लोगों के प्रश्नोतर झेलने के लिए ,
हमको पढ़ना ही होगा।
घोर अंधकार में एक किरण आशा की ,
खोजना ही होगा ,चलना ही होगा |
किस्मत के पंजो से सफलता ,
छीनना ही होगा, हमको लड़ना ही होगा |
Poet
Vartika Dubey
Publisher
Om Tripathi
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Social Site Manager
Shourya Paroha
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