बसन्त की बहार
"खिली-खिली सी धूप, खेतों में हरियाली ,
नवीन सुमन पल्लव पर जैसे बिखर गई हो लाली ।"
बीती शिशिर ऋतू आई पतझण बसंत बहार ,
आओ ! री सखियों मिलकर गायें मंगलाचार।
बागों में फूली हर डाली,
मन को भाय रही हरियाली,
बरसे कुसुम चटक गई कलियाँ,
महक उठीं कुंजन की गलियाँ।
तरुवर लगी मंजरियों पर कोयल की गुहार।
बीती- - - - - - - - -
लागन लगी सुहानी छाया,
चहुँ दिशि छाई ईश्वर की माया,
है कल्पनाओं में खोया मन,
स्वर्ग उतर धरती पर आया,
मानों नवीन प्रकृति ने फिर से किये सोलह श्रृंगार ।
बीती -- - - - - - - - -
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Om Tripathi
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