है बड़ी दुर्गम डगर ये,
पर नहीं कमजोर है,
धर्म की इस राह पर कठिनाइयाँ घनघोर हैं।
है गर्त की उस राह से, हमको बचाता धर्म ही,
सच्चाई और बेईमानी का , दर्पण दिखाता धर्म ही
रात काली छाया है साक्षात तो भोर है ।
बड़ी दुर्गम है - - - - - - -
है सभ्यता का आचरण ,सम्बधों की लक्ष्मणरेखा
मानव,जो तूने किया , रखता है सबका लेखा
क्यूँ भटकता है रे प्राणी! मुक्ति का रास्ता इस ओर है ।
है बड़ी दुर्गम - - - - - - - -
Written by
Tamanna Kashyap
Rajparapur,Sitarpur, U.P.
Posted by
Om Tripathi
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