वापस, लो रे सरकार सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वापस, लो रे सरकार

 


कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


वापस लो, वापस लो, वापस लो रे सरकार,

कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार ।

ये बिल हमें हरगिज, नहीं,नही,नहीं है स्वीकार,

वापस लो, इस बिल पर, पुनः करो रे विचार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


1.जाने कैसे, क्यों, कहाँ, किसका, दिमाग है फिरा,

किया न गया किसी से, कोई, सलाह मशविरा ।

निभा रहा है, न जाने कौन, किसका किरदार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


2.राजनीति से हमारा, कोई, काम नही है,

किसी की कुर्सी भी, हमारा, मुकाम नही है ।

हम मांग रहे हैँ, सिर्फ, हमारा कृषि अधिकार,

कृषि बिल को फौरन वापस, लो रे सरकार ।


3.हमसे खान-पान है, हमी से जिंदगी में जान है,

फिर भी,कभी अभिमान ना किया, हम वो किसान हैं ।

देखो, हर हाल में हम, सबके लिए, रहते हैँ तैयार,

कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार ।


4.भूखे रह के भी, हमने,हमेशा,सबका पेट भरा है,

बाढ़, सूखे में भी न हमारा,कभी भी, रेट बढ़ा है ।

हमसे ही संतुलित है, भारत देश का बाज़ार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


5.हम किसान हैँ, धरती से हम, अनाज हैं उगाते,

एहसान मान, हमसे ही, तुम, राज-काज हो चलाते ।

ये उपकार नही, बल्कि, पूरा देश है, हमारा परिवार,

कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार ।


6.अर्थ व्यवस्था के हैं, सिर्फ हम ही, सही स्तंभ,

अपने इस आस्था पे, हमे, हमेशा से है दम्भ ।

पड़ने ना देंगे, हम कभी भी, इसमे कोई दरार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


7.अपनी बात कई बार, हमने, स्पष्ट कही है,

फिर एक बार कहने में, हमे कहीं कोई, कष्ट नही है ।

जाने क्यों, कोई, सुनने को ही, नही है तैयार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


8.अनभिज्ञ नहीं, असली सूत्रों से बात कर,

अरे ,विशेषज्ञ नहीं, धरती पुत्रों से बात कर ।

हमारे घर आ, हमारे संग ले, एक वक्त का आहार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


9.ना जाने कहां, क्या-क्या तू, बनाने मे लगा है,

सब जाग गए, पर तू, अभी तक, नींद से न जगा है ।

तू बता तो सही, तू, कहां, कैसे, किससे है लाचार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


10.हुक्मरान है तू, सदा, हुक्मरान ही रहेगा,

एक किसान के दर्द को कभी, तू ,ना समझ सकेगा ।

यही बात समझाने तुझे, हम, आये हैं तेरे द्वार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


11.जमींदार हैं हम, कोई, बेरोजगार नही हैं,

काश्तकार हैं हम, कोई, सेठ, साहूकार नही हैं ।

तेरे जुमले, हमारे, किसी काम के नहीं है यार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


12.बंद कर रूठे बालकों को, बस यूं ही मनाना,

बंद कर, झूठे बैनरों के पीछे, अपना, मुहँ छुपाना ।

बंद कर, मुखौटों का ये, मजलिस औऱ बाज़ार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


13.हम शांत हैँ तो, हमे तू, कमजोर ना समझ,

मान बात इसे, तू, बस यूं ही, सिर्फ शोर ना समझ ।

हर परिणाम का, सिर्फ और सिर्फ, तू ही है जिम्मेदार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


14.हम शेर हैं, हमे तू, मोगली, सियार ना समझ,

दिलेर है हम, हमें तू, मौसमी बुखार ना समझ ।

ज्यादा छेड़ ना हमें, हम नहीं चाहते, हो कोई तकरार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


15.हम किसान हैं, हमारा कोई, जात धर्म नहीं है,

खेती के सिवा, हमारा, दूसरा, कोई कर्म नही है ।

हमारे खिलाफ, कोई, ना कर अनर्गल तू प्रचार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


16.यहाँ कोई गैंग-वैंग, कोई, खालिस्तान नही है,

क्यों, तुझे हममे कहीं दिखता, हिंदुस्तान नही है ।

एक बार देख ठीक से, अपना, पुराना चश्मा उतार,

कृषि बिल को फ़ौरन, वापस, लो रे सरकार ।


17.यहां,अपना घर छोड़ हम, पिकनिक पे नहीँ बैठे,

इस कड़कड़ाती ठंड मे हम, शौक से नहीं हैं ऐंठे ।

बंद कर, रोज, अपना, प्रस्ताव का ये, वार बार-बार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


18.ये जो पुलिस बल है, ये सब, हमारे ही हैं बच्चे,

ये, आँख हमे ही दिखाते हैं, लगते नही हैं अच्छे ।

इनकी शान, सुरक्षा का भी, हम पे ही है भार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


19.हमे जाने दो हमारी, जन्म-कर्म भूमि है बुलाती,

हमें, अपनी खड़ी फसल की बहुत ,याद है सताती ।

अपने ही देश मे हमे, तुम, यूँ ही, करो न तड़ीपार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


20.हम खुश रहे तो तुझे भी, सर आंख पर बिठाएंगे,

वरना इस मिट्टी की कसम,तुमको,सबक हम सिखाएंगे इस पगड़ी की खातिर, इस बार, हम होंगे आर पार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


21.छीन के जमीं हमारी, तू भी, ना बच पायेगा, 

किसी दीन दुखियारी का तुम्हे, श्राप लग जायेगा ।

छोड़ दे, सरकारी नादानी, रे, हठी बरखुरदार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


22.किसानों के लिए, अलग से, कचहरी बनाओ,

एम एस पी सुनिश्चित हो, हमें, ये यकीं दिलाओ ।

हम सब , कार्पोरेट्स का, करते हैं बहिष्कार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


23. कोरोना का प्रकोप, अभी, खत्म ना हुआ है,

क्या अभी भी ये लालीपॉप, तुझे, हजम ना हुआ है ।

खामखा का, अड़ियल रुख, ना कर तू इख्तियार ।

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


24. दे रहे हैं यहां से, हम, तुमको आज अल्टीमेटम,

नही चाहते , किसी बात का, मनाना हम मातम ।

अब भी चेत जाओ रे, हठयोगी, वियोगी चौकीदार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


~₹~

तू हमारी सुनेगा तो, हम, तुम्हारी भी सुनेंगे,

हमने, ही तुम्हें चुना है, हम ही ,फिर तुम्हें चुनेंगे ।

आज क्यूँ ना कर लें, हम, आपस मे ये करार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।


वापस लो, वापस लो, वापस लो रे सरकार,

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।

ये बिल हमें,हरगिज,नहीं,नहीं,नहीं है स्वीकार,

वापस लो, इस बिल पर, पुनः करो रे विचार ।

कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार ।

Written by

अशोक कुमार ओझा


8141161192

15, बंसी बंगलो, करमसद रोड, वल्लभ विद्यानगर, आनंद, गुजरात 388120

Posted by

Om Tripathi

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

हमें बताएं आपको यह कविता कैसी लगी।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Ummeede

_   उम्मीदें उम्मीदें इस जहाँ में बस ख़ुदा से रखना तुम साबरी इंसान कभी किसी के साथ वफ़ा नहीं करते। जो क़ैद कर ले किसी को अपनी यादों में, तो मरने तक उनको उस यादों से रिहा नहीं करते। रूह से इश्क़ करना ये बस ख़्वाबों-ख़यालों  फिल्मों में सुन रखा होगा सबने, हक़ीक़त में इस जहाँ में लोग बिना जिस्म के इश्क़ का सौदा नहीं करते। वादे करके भूल जाना तो इंसान की फ़ितरत है। यहाँ वादे ख़ुदा से भी करके लोग पूरा नहीं करते। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Chitthi

  चिट्ठी (कविता)  लिख कर चिट्ठी भेज रही हु भगत सिहं तुझे बुलाने को ,  1 बार फिर आ जाओ अपना देश बचाने को ।  छोटे छोटे बच्चे भुखे रोते रोज सीमा पर शहीद सैनिक होते  भारत मॉं पर हमले पाक चीन के होते  देश हथियाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को।  रोज नए नए गठबन्धन होते नए नए नेताओ के संगम होते ,  गद्दार सब काले धन पर सोते आराम फरमाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ना एकता लोगो मे आयी, भाई ने भाई की जान गवायी ,  और सरकार ने करवाई लडाई दंगे भडकाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  गरीबो का होता शोषण हो रहा अमीरो का पोषण ,  सरकार दे रही झूठा भाषण वोट बनाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  हम भारत के वासी हमारा ना ईश्वर ना कैलाशी ,  सब कुछ बस भारत मॉँ कहलाती ,  आ जाओ पाक चीन का दिल दहलाने को,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ये देश ही मेरी पूजा है, भगवान है ,  शबगा है गाँव मेरा और भारती मेरा नाम है ,  मै प्रेम भाव से लिखू कविता ,  भारत के सपने नये सजाने को ,  आ जा...

Mere kridan bade surile

  मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं (कविता)  जिस रोज वैदेही के अंखियो से , मेरी जडों में जल प्रपात उठ आया , उस रोज प्रकृति ने भी। कुज वसुधा की पलटी काया।। मेरी पुत्री मेरी छांव में बैठी , ऐसे विलाप के गायन ज़रा नुकीले हैं।         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ पांचाली से मुझे हर लिया , सुष्म - बदन निर्झरणी को ॥ देख विप्लव मैं कलंकित हो गई , दुःशासन की करनी को ॥ पवित्र कलिंदी के गर्भ में भी, कुकर्म के विशाल टीले हैं,,         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ जब वैकुण्ठ भीगो के गोढ़ , बैठे चले मुझ पे तरणी में ॥ संग अनुज- सिया रखुबर पुर जाई , मन करे छंद भर दौड़ , चुम आऊँ आज चरणी मैं ॥           कब मिलिहो  चउदा बरस बाद ?? बिन तुमरे , हो गई अयोध्या भय - सूना काल।। मेरा व्योम चुरा लेगी रजनी ये!!...