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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

🌹 दर्द-ऐ-तन्हाई 🌹

उस से क्यूँ रहा नही गया मुझ से #दर्द सहा नही गया  दुर तक यह #तन्हाईयोँ का सिलसिला दिया दायरे इनकार के,,, इकरार की सरगोशियाँ दिल से भूला देने का मुझे ना कोई #गिला दिया दर्द-ऐ-तन्हाई की सारी तहे और हादसे गुजार दिये सब हो गये धुँआ एक एक वाकिया #विसार दिये #लज्जत-ऐ-वस्ल से भी बढ कर है मजा इक सफीना सा है तेरी तन्हाई की सजा दिल में छिपे हसरतों के #मयखाने सजते रहे हिचँकिया रात भर #दर्द-ऐ-तन्हाई बजते रहे  उस से क्यूँ रहा नही गया  मुझ से #दर्द सहा नहीं गया  Written by डाँ मोहन लाल अरोड़ा  ऐलनाबाद सिरसा 26-10-2020 9896853750 Posted by Om Tripathi

क्षण भंगुर है जीवन अपना

  क्षण भंगुर है जीवन अपना मिट्टी की है देह मानव तू फिर भी इतराता कैसा तेरा है ये नेह साथ न अपने जाना है कुछ साथ न अपने जाएगा फिर भी तेरे अंदर का मिटे न ये कलेश समय का पहिया घूमे है जग में बैरी है ये खेल तेरा मेरा करते करते बिगड़ जाएगा तेरा खेल प्रीत लगा तू उससे अपनी जो लाया तुझे इस देश कर ना प्रेम सभी से तू मिटेगा फिर तेरे अंदर का अंधेरा , मिट जाएगा कलेश हां प्यारे मिट जाएगा कलेश कंचन सी काया, माया मिट जाएगी माटी में मिट जाएगा ये फिर भेष जग में रह ले प्यार से धुल जाएं फिर ये कलेश स्व त... Written by kanchan Varshney Posted by Om Tripathi

भाई

  कैसा भी हो एक भाई होना चाहिये………. बड़ा हो तो रक्षा करे जो बहन की छोटा हो तो हमारे पीठ पीछे भी खयाल रखे……….!! बड़ा हो तो चुपचाप हमारे दिल की सुने छोटा हो तो मन की सुने………!! छोटा हो या बड़ा मन में मैल न रखे जो एक भाई होना चाहिये…….!! बड़ा हो तो, गलती पे हमारे कान खींचे छोटा हो तो अपनी गलती पर, सॉरी दीदी कहने वाला… खुद से ज्यादा हमे प्यार करने वाला एक भाई होना चाहिये..!!  और भाई होकर बहन को जो न समझे ऐसा भाई भी नहीं होना चाहिए......!! भाई दूज की शुभ कामनाएं!!  Written by स्व रचित ......( कंचन वार्ष्णेय) Posted by ओम त्रिपाठी

💐 #मौत 💐

#मौत आनी है  मगर ना जाने कब और किस पल और किस रूप मे #अनिश्चितता के साये में  यह #जिंदगी से बेहतर  #मौत ही लिखती है  जीत और हार की दास्ताँ कभी उस और जाते कदम कभी #लौट कर आते कदम #खुदकशी की हिम्मत  हस्पताल की #बिमारी या फिर #बुढापे की लाचारी  शायद इन रूपो से  सजेगी #चिता हमारी हिम्मत कहुँ या #कायरता  नही भय हमे #मौत से  बहुत बार गई है #लौट के  #चौखट हुई ना पार #मौत गई हार इस #मौत के जादू से  ना कोई #बचा हैं  ना ही #शायद कोई बचेगा #जिंदगी की इस जंग में  क्यूँ कर कोई #जंचेगा राते भी होने लगी #सर्द  चेहरा पड़ने लगा #जर्द #डाक्टर भी ना समझे डुबती #नब्ज का दर्द  शायद,,,आ गई है #मौत Written by डाँ मोहन लाल अरोड़ा  ऐलनाबाद सिरसा Posted by ओम त्रिपाठी

💐 अर्थी 💐

सजने लगी अर्थी हमारी कितने कंधो पर पड़ेगी भारी रोने लगी पत्नी हमारी थी बेचारी किस्मत की मारी समझाने लगी जनता सारी चलने लगी जब अर्थी हमारी कंधा दे बेटा साथ में बेटी बेचारी पोते ने किया नमन मारी किलकारी  बहु बेटे को भी लगी चित्कारी समझाने लगी जनता सारी  आगे बढी जब अर्थी हमारी  रिति रिवाजो की थी भरमारी  निभने लगी रिस्ते और नातेदारी  यह सब है दुनिया दारी समझाने लगी जनता सारी  पहुँची जब शिव धाम में अर्थी हमारी  होने लगी दाह संस्कार की तैयारी  किसी ने शाल किसी ने चद्दर वारी यह थी हमारी आखिरी सवारी समझाने लगी जनता सारी  चिता पर सजी जब अर्थी हमारी  दे मुख अग्नि रित निभाई सारी हम से हमारी जिंदगी हारी आज हमारी कल आपकी बारी समझाने लगी जनता सारी  सजने लगी जब अर्थी हमारी  समझाने लगी जनता सारी  Written by डाँ मोहन लाल अरोड़ा  ऐलनाबाद सिरसा Posted by ओम त्रिपाठी

स्त्री

  आओ मिलकर आज करें हम, स्त्री प्रसंग विमर्श। मनुज प्रकृति प्राणीमात्र का,जिस बिन ना उत्कर्ष।।     पौरुष केवल बीज मात्र है, स्त्री अखिल है सृष्टि।     जन्मदात्री पोषणकर्ता, है संपूर्ण ब्रह्मांड समष्टि।। पुरुष यदि पदार्थ मुख्य है, स्त्री है उत्कृष्ट ऊर्जा। कोख में धारण करें तभी तो, बनता पुर्जा पुर्जा।।        स्वदुग्ध और लहू से करती,वह संतान का पालन।        निर्बल नहीं निर्मात्री है स्त्री, योग्य सदा आराधन।। मातु भगिनी दार रुप में, सदा पुरुष का सहयोगी। कलुषित दृष्टि डाल रहे जो, वो नितांत मनोरोगी।। Rajendra Sharma "राज" 09.11.2020 आओ मिलकर आज करें हम, स्त्री प्रसंग विमर्श। मनुज प्रकृति प्राणीमात्र का,जिस बिन ना उत्कर्ष।।     पौरुष केवल बीज मात्र है, स्त्री अखिल है सृष्टि।     जन्मदात्री पोषणकर्ता, है संपूर्ण ब्रह्मांड समष्टि।। पुरुष यदि पदार्थ मुख्य है, स्त्री है उत्कृष्ट ऊर्जा। कोख में धारण करें तभी तो, बनता पुर्जा पुर्जा।।        स्वदुग्ध और लहू से करती,वह संतान का पालन।    ...

जिंदगी की जंग

  जिंदगी की जंग में कभी हारे कभी जीते...... ए जिन्दगी फिर भी तेरे साथ रहे हैं हम...... जीने की जिजीविषा से जूझते रहे  हालातों से कभी टूटे नहीं हम ए जिन्दगी फिर भी तेरे साथ रहे हैं हम........ अनेकों झंझावात से लड़ते रहे हरदम ए जिन्दगी फिर भी तेरे साथ रहे हैं हम...... मौत आई थी मगर पुकार कर चली गई जिंदगानी में मगर जिंदगी देकर गई, सामना करते रहे झुके नहीं कभी हम ए जिन्दगी फिर भी तेरे साथ रहे हैं हम....... गम नहीं अब हमें कोई कौन साथ रहे , कौन छूटे हम तो मौत के भी पास आकर जीते रहे हैं हम ए जिन्दगी फिर भी तेरे साथ रहे हैं हम........ Written by  kanchan Varshney B-30/A, Yamuna vihar Ph no.8802631009 Posted by Om Tripathi

🌹 दर्द-ऐ-तन्हाई 🌹

उस से क्यूँ रहा नही गया मुझ से #दर्द सहा नही गया  दुर तक यह #तन्हाईयोँ का सिलसिला दिया दायरे इनकार के,,, इकरार की सरगोशियाँ दिल से भूला देने का मुझे ना कोई #गिला दिया दर्द-ऐ-तन्हाई की सारी तहे और हादसे गुजार दिये सब हो गये धुँआ एक एक वाकिया #विसार दिये #लज्जत-ऐ-वस्ल से भी बढ कर है मजा इक सफीना सा है तेरी तन्हाई की सजा दिल में छिपे हसरतों के #मयखाने सजते रहे हिचँकिया रात भर #दर्द-ऐ-तन्हाई बजते रहे  उस से क्यूँ रहा नही गया  मुझ से #दर्द सहा नहीं गया  Written by डाँ मोहन लाल अरोड़ा  ऐलनाबाद सिरसा 26-10-2020 9896853750 Posted by Shourya Paroha

शायरी

मैंने खाली गागर को भी छलकते हुए देखा है....  इश्क़ वो रिश्ता है....  जिसे मैंने दिलो से निकल कर भी रंगों मै ढलते हुए.. देखा है.... काफी अच्छी वाकफियत हैं....  उसके खयालो से मेरी...  फिर भी ना जाने क्यो इतना गैर समझता है...  वो मुझे...  और कौन है दूसरा...  जो उन्हें छोड़ दू उसके दर पे...  मै एकलौता हु अपनी मॉ का...  कोई पूछे तो मेरे मन से.  तू है मेरे दम से.  मगर मेरी मॉ नहीं मेरे तन से.  हक़ीक़त तो ये है.  की मै हु अपनी मॉ तन से... निगाहो ने ना तसदिक की जिसकी...  दिल उसका एहतराम कर बैठा है...  मुसलसल आंसुओं से ना हरी हो सकी जो ज़मीन..  दिल उस बंजर ज़मीन से प्यार कर बैठा है.. सौंप दो अपनी तकलीफे मुझे...  मे ना इन्हे बर्बाद करूंगा....  मे तो शायर हु साहब...  हसकर ही इनसे बात करूंगा... काश हमें भी किसी ने ठोकर मार दी होती..  दिल टूटता..  तभी तो कमाई होती...  क़ैद ए हुनर मालूम था. उसे  वो पैसे ए सय्यद था.  वफ़ा करता भी तो कैसे करता.  हाथों मे उसके जाल था.     ...