क्षण भंगुर है जीवन अपना
मिट्टी की है देह
मानव तू फिर भी इतराता
कैसा तेरा है ये नेह
साथ न अपने जाना है कुछ
साथ न अपने जाएगा
फिर भी तेरे अंदर का
मिटे न ये कलेश
समय का पहिया घूमे है
जग में बैरी है ये खेल
तेरा मेरा करते करते
बिगड़ जाएगा तेरा खेल
प्रीत लगा तू उससे अपनी
जो लाया तुझे इस देश
कर ना प्रेम सभी से तू
मिटेगा फिर तेरे अंदर का
अंधेरा , मिट जाएगा कलेश
हां प्यारे मिट जाएगा कलेश
कंचन सी काया, माया
मिट जाएगी माटी में
मिट जाएगा ये फिर भेष
जग में रह ले प्यार से
धुल जाएं फिर ये कलेश
स्व त...
Written by
kanchan Varshney
Posted by
Om Tripathi
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