बाजीकरण के दौर में, कोरोना फैल चुका है, संक्रमण के चलते देश, व्यापार आदि सब बंद हो चुका है। ये दौर बहुत मुश्किल है सच में मजदूरों के लिए, वो पहले भी मरते थे या मारे जाते थे पूंजीपतियों द्वारा फैक्ट्रीयों में, कारखानों में मीलों में और अब भी वो मारे जा रहे हैं भूख द्वारा सडकों पर पैदल चलने से मालगाड़ीयों से कटने से और रेलगाड़ी के भटकने से लेकिन दलील यह होगी मध्यमवर्ग की कि सडको ंं पर निकलना नहीं चाहिए था उन्हें या पटरी पर सोना नहीं चाहिए था उन्हें मगर मुआफ़ कीजिये यह पूंजीपतियों की ही भाषा है ये हुक्म्रानों और सत्ताधारीयों की ही जुबान है , जो मजदूरों का खून पीकर भी उन्हें ही दोषी मानती है तो इस दलील पर यह सवाल है की मजदूर को रोटी कहाँ से मिलेगी उन्हें आराम की नींद भूखे पेट कैसे मिलेगी? जब लाॅकडाउन के नाम पर बिना व्यवस्था के सब कुछ बंद कर दिया कोरोना वायरस महामारी ही एक समस्या नहीं है समस्या भूख , सरकार की लापरवाही और अव्यावश्था भी है चाहे मर जाए कोई ट्रेन से कटकरक, हाईवे पर गाड़ीयों से कुचलकर , या भूख से बिलखकर सरक...
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