तुम तो अंतरयामी हो॥
कई रूप तुम्हारे हैं विकराल,
पर तुम भोले भंडारी हो॥ मैं नित्य.........॥
हम अज्ञानता पूण हुए हैं,
तुम ज्ञानी विज्ञानी हो॥ मैं नित्य............॥
जग में तुम ही रास रचाओ,
तुम ही पालन हारी हो॥ मैं नित्य...........॥
कई कर्म हुए अधर्म हुए,
पर तुम ही पालन हारी हो॥ मैं नित्य......॥
राम नाम की रास रचाई,
तुम शंकर अविनाशी हो॥ मैं नित्य.........॥
मैं याद करूँ फरीयाद करूँ,
तेरा दर संकट हारी है॥ मैं नित्य.............॥
मन भावन सावन तेरा,
मैं रोज तुम्हारा ध्यान करूँ॥ मैं नित्य......॥
रावण के भगवान हो तुम,
श्री विष्णु के साथी हो॥ मैं नित्य...........॥
जगत पिता पालन हारी,
तुम ही कैलाश निवासी हो॥ मैं नित्य.....॥
नृत्य कला मैं सबसे ऊपर,
तुम गायन सुर धारी हो॥ मैं नित्य.........॥
Written by
-Vedansh Pathak
Posted by
-Om Tripathi
Jai shiv shanker
जवाब देंहटाएंThanks bhai
हटाएंVedansh defined mahakal by amazing poem
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुत शानदार
जवाब देंहटाएंjai mahakal
जवाब देंहटाएंTq
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