Dadi Maa सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Dadi Maa

दादी मांँ



दादी रोज सवेरे उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि करके भगवान की पूजा करती और समय पर रसोई में आकर अपने पसंद का नाश्ता बनवाती है दादी के घर में सब संस्कारी है। दादी ने सबको संस्कारी बनाया घर में आए हुए थेअतिथि का पूरा आदर् सत्कार हो तथा बच्चे बड़े बूढ़े सब का सम्मान हो। दादी अपना कोई काम अगर किसी पड़ोस में भी कह दे तो कोई मना नहीं करता ।बच्चे बूढ़े गली गुवाड़ सब दादी का कहना मानते हैं।
दादी छोटी उम्र में ही विधवा हो गई। उस जमाने में विधवा होने का मतलब अभिशाप था दादी कहीं बाहर नहीं निकलती और छायली कपड़े पहनकर रहती। दादी काम में बहुत चतुर रसोई बनाने से लेकर कशीदा काश्तकारी सभी में परफेक्ट थी घर में शादी विवाह या पड़ोस में शादी ब्याह होता तो सब का कार्य करके घर बैठे मुफ्त में कर देती। किसी के आगे अपने स्वाभिमान को नहीं गिराया अनपढ़ थी फिर भी सब कुछ कार्य करने में उत्साहित रही और कार्य करते-करते अपनी जिंदगी को व्यस्त रखना चाहती थी।
दादी का एक बेटा और एक बेटी थी बेटी की शादी करके ससुराल भेज दिया और बेटे के भी छोटी उम्र में शादी कर दी। ताकि दादी का अकेलापन कम हो जाए। दादी के दो पोते हो गए।
लेकिन विधाता ने दादी की और परीक्षा ली। एक दिन बुखार आने पर दादी का इकलौता बेटा गुजर गया। दादी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा अब दादी से खड़ा नहीं हुआ जाता उनके पैरों ने जवाब दे दिया। फिर भी दादी ने हिम्मत नहीं हारी बहू और पोतों को संभालना था घर में कमाने वाला कोई नहीं था। संपन्न परिवार था फिर भी आज उसके पास कुछ भी नहीं रहा।
 दादी ने अपना गहना बेचकर जैसे तैसे बच्चों की अच्छी परवरिश की उन्हें कभी कोई चीज की कमी नहीं होने दी और पढ़ाया लिखाया आगे बढ़ाया जैसे ही बच्चे बड़े हो गए तो नौकरी करने बाहर चले गए क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति सुधारना जरूरी था।अब दादी और दादी की इकलौती बहू दो जने घर में रहते थे दादी को अकेलापन महसूस होता ।
दोनों पोतों ने दादी की रज़ा मंदी से ही विदेश में अपने पसंद की शादी कर ली।
रात को अकेली सोती सोती दादी सोचती कि कभी वह दिन था जब बच्चे खिचड़ी में घी डालने का कहते तो पर्याप्त घी न होने पर घी में आधा पानी मिलाकर बच्चों को खिला देती और उन्हें खुश कर देती। आखातीज पर बच्चे पतंग दिलाने का कहते तो दादी आंगन में पड़ी कटी हुई पतंगें इकट्ठा करके बच्चों को दे कर खुश कर देती।
दादी ने खुद मेल कुचेले फटे कपड़े पहनकर बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी की।उसे लगता घर में कोई जिम्मेदार आदमी नहीं था उसे ही सब कुछ संभालना पड़ेगा अपनी तिजोरी में से दादी ने सोना बेचा और सब का पालन पोषण किया। रात को सोते सोते दादी की आंखों में आंसू आ जाते हैं लेकिन आंसू पोछने वाला कोई नहीं होता अपने आप को खुद ही संभालना पड़ता फिर कहती है खुदा तूने जो किया है खुद ही संभालना। अब दादी को पुरानी बातें भी याद आती। रात के समय दादी के सब इकट्ठे होकर पांव दबाते दादी भी लंबी-लंबी कहानी सुनाती जो ज्ञानवर्धक होती थी ऐसे करते जब दादी को नींद आ जाती तब सब बच्चे अपने-अपने जगह पर सो जाते ।
लेकिन अब समय के साथ सब बदल गया पोते बड़े हो गए और बाहर नौकरियां करने लग गए दादी के पास बैठने वाला कोई नहीं है दादी अकेली है वह समय पर खाना खाती है पर उसे अच्छा नहीं लगता है दादी अब चल फिर नहीं सकती । दुखों ने दादी के घुटने समय से पहले तोड़ दिए । बैठे-बैठे ही वह दिन याद करती रहती है कि जब सब बच्चे पास में इकट्ठे होकर एक थाली में खाना खाते और दादी उनको अपने हाथ से खाना परोसती जिसमें बड़ा मिठास होता प्यार और आशीर्वाद के साथ बच्चों को मनुहार करके खाना खिलाती थी।
 अब पैसों की कोई कमी नहीं लेकिन समय किसी के पास नहीं है । वृद्ध लोगों को सिर्फ समय चाहिए उन्हें पैसे की जरूरत नहीं है बच्चे अपनी-अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी संभालते हुए यह भूल गए की दादी ने हमें कैसे पाला और किस तरह से कठिनाइयां उठाई । दादी का हाल-चाल अब फोन पर ही पूछते आज दादी ज्यादा बीमार है तब पूरा परिवार इकट्ठा हो गया और दादी अंतिम समय में अपनी बची-कुची दौलत को संभालाते हुए यही कहकर चल बसी की सब एक होकर एक थाली में मिलकर खुशी से खाना खाना । शहर से बाहर जाकर नौकरियां नहीं करना थोड़ा बहुत मिले उसमें संतोष से अपने शहर में ही अपने कोई कार्य की जुगाड़ कर लेना । अपने देश और शहर में भी काम की कोई कमी नहीं है । बच्चों के दूर रहने से घर परिवार बिखर जाता है सबको अकेलापन रहता है तथा नए जन्मे बच्चों को भी कोई संस्कार नहीं मिल पाता और ना ही माता-पिता की सेवा हो सकती है । परिवार की आंखों में आँसू आ गए और दादी को बड़े ही दुखी मन से विदा करते हुए संकल्प लिया की दादी तो चली गई अब माँ के साथ देश में ही रहेंगे । तभी दादी माँ को सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी।


👉हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें👈

Poet

 Amita Shetia

EDUCATION :
ADDRESS :






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Ummeede

_   उम्मीदें उम्मीदें इस जहाँ में बस ख़ुदा से रखना तुम साबरी इंसान कभी किसी के साथ वफ़ा नहीं करते। जो क़ैद कर ले किसी को अपनी यादों में, तो मरने तक उनको उस यादों से रिहा नहीं करते। रूह से इश्क़ करना ये बस ख़्वाबों-ख़यालों  फिल्मों में सुन रखा होगा सबने, हक़ीक़त में इस जहाँ में लोग बिना जिस्म के इश्क़ का सौदा नहीं करते। वादे करके भूल जाना तो इंसान की फ़ितरत है। यहाँ वादे ख़ुदा से भी करके लोग पूरा नहीं करते। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Chitthi

  चिट्ठी (कविता)  लिख कर चिट्ठी भेज रही हु भगत सिहं तुझे बुलाने को ,  1 बार फिर आ जाओ अपना देश बचाने को ।  छोटे छोटे बच्चे भुखे रोते रोज सीमा पर शहीद सैनिक होते  भारत मॉं पर हमले पाक चीन के होते  देश हथियाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को।  रोज नए नए गठबन्धन होते नए नए नेताओ के संगम होते ,  गद्दार सब काले धन पर सोते आराम फरमाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ना एकता लोगो मे आयी, भाई ने भाई की जान गवायी ,  और सरकार ने करवाई लडाई दंगे भडकाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  गरीबो का होता शोषण हो रहा अमीरो का पोषण ,  सरकार दे रही झूठा भाषण वोट बनाने को ,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  हम भारत के वासी हमारा ना ईश्वर ना कैलाशी ,  सब कुछ बस भारत मॉँ कहलाती ,  आ जाओ पाक चीन का दिल दहलाने को,  आ जाओ अपना देश बचाने को ।  ये देश ही मेरी पूजा है, भगवान है ,  शबगा है गाँव मेरा और भारती मेरा नाम है ,  मै प्रेम भाव से लिखू कविता ,  भारत के सपने नये सजाने को ,  आ जा...

Mere kridan bade surile

  मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं (कविता)  जिस रोज वैदेही के अंखियो से , मेरी जडों में जल प्रपात उठ आया , उस रोज प्रकृति ने भी। कुज वसुधा की पलटी काया।। मेरी पुत्री मेरी छांव में बैठी , ऐसे विलाप के गायन ज़रा नुकीले हैं।         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ पांचाली से मुझे हर लिया , सुष्म - बदन निर्झरणी को ॥ देख विप्लव मैं कलंकित हो गई , दुःशासन की करनी को ॥ पवित्र कलिंदी के गर्भ में भी, कुकर्म के विशाल टीले हैं,,         सुन आर्यपुत्र की माई !!                         मेरे क्रंदन बड़े सुरीले हैं ॥ जब वैकुण्ठ भीगो के गोढ़ , बैठे चले मुझ पे तरणी में ॥ संग अनुज- सिया रखुबर पुर जाई , मन करे छंद भर दौड़ , चुम आऊँ आज चरणी मैं ॥           कब मिलिहो  चउदा बरस बाद ?? बिन तुमरे , हो गई अयोध्या भय - सूना काल।। मेरा व्योम चुरा लेगी रजनी ये!!...