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Badla mausam

बदला मौसम

शाम का वो वक्त धीरे-धीरे ढलता हुआ वो सूरज ढलते हुए सूरज को देखकर वो गुनगुनाती हुई हवाएं धीरे-धीरे वो किरणों का छुपना एक बड़े से रेत के टिब्बे के पिछे सुरज का वो छुपना सोने कि तरह चमकती हुई वो सुनहरि रेत धीरे-धीरे सूरज ढल गया ।और रात हो गई ।पर उफ। रात तो शाम से भी ज्यादा सुहानी लग रही थी। वह बादलों पर सपनों की तरह बिखरे हुए तारे ।वह मंजिल की तरह चमकता हुआ चांद ।वह हलचल मचाने वाली धीमी धीमी जुगनू की आवाज। चांद से ज्यादा खूबसूरत वह तारों से भरा हुआ आसमान ।चांद को देखते देखते फिर सुबह हो गई। सुबह-सुबह वह ओस कि बूंद का पत्तों पर गिरना ।वह चहकती हुई चिड़िया की आवाज ।वह धीरे-धीरे सूरज की किरणों का धरती को छूना। सुबह-सुबह हवाओं का किरणों के साथ वह ठिठौली करना। फिर देखते-देखते माध्यम से सूरज का जलते हुए अंगारे में बदल जाना ।वह सुहाती हुई किरणों का कड़कती धूप में बदलना। मां के आंचल की तरह नर्मी देने वाली रेत का अंगारों में बदल जाना ।फिर वो अचानक से किरणों का आसमान को ढक लेना।।

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 R. K

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