_ औरत हूं
हम औरत है हमारे कंधों पर जिम्मेदारियां बोझ बनकर खड़ी है
और घर में आवाज़ गूंज रही है
तुम दिन भर करती क्या हो
सुबह नाश्ता बच्चो का टिफिन पति को ऑफिस और न जानें कितने काम
और घर में आवाज़ गूंज रही है तुम दिन भर करती क्या हो
नौ माह बच्चे को गर्भ में रखे प्रसव वेदना सहे उनके लालन पालन में समय निकाले
अनेक तकलीफ़ सहे
और घर में आवाज़ गूंज रही है तुम दिन भर करती क्या हो
बच्चों की पहली टीचर बनू घर की साफ़ सफाई करू
सास ससुर पति की सेवा करू
मेहमानों की देखभाल करते हुए आगे पीछे डोलू
और घर में आवाज़ गूंज रही है तुम दिन भर करती क्या हो
कोई बीमार पड़ जाएं नर्स बन जाऊं
अपने सपने दबाकर दुसरे को बनाऊं
हर ज़िम्मेदारी को हंसकर उठाऊं
फिर भी
न जाने क्यूं घर में आवाज़ गूंज रही है तुम दिन भर करती क्या हो
मैं कुछ करती नही
फिर भी मैं प्रकृति हूं और तुम्हारा सृजन भी
आख़िर क्यों
Amrita tripathi
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Publisher
Om Tripathi
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