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Jhukna nhi aata

 

_झुकना नहीं आता



मुझे हर किसी  के आगे झुकना नहीं आता 
चली हूं जबसे सफर पर रुकना नहीं आता

जिसने सारी उम्र सिर्फ कहना ही सीखा है 
उन्हें अक्सर किसी  को सुनना नही आता

ख़ामोश रहना मुझे अब अच्छा लगता है
सब कहते है की मुझे हंसना नहीं आता

बचपन से जवानी तक वो रखते है जिन्हे
उन बच्चो को बूढ़े मां बाप रखना नहीं आता

जिससे रूठ जाए उसके अपने सभी 
उस शख़्स को कभी रूठना नही आता

 एक हार से ,जो जिंदगी हार जाते हैं
 उन्हें गिरकर संभलना नहीं आता

कहते है लोग की लिखना बड़ी बात है क्या
हर किसी को जज़्बात लिखना नहीं आता


साक्षी चौहान
ग्वालियर (मध्य. प्रदेश)

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Poet

Sakshi Chauhan

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