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जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Shramik

  _श्रमिक श्रमिक मैं श्रमिक परिश्रम से मेरी पहचान मै ना देखूं दिन मैं ना देखूं रात मेहनत ही मेरा विहार दो टूक पाने की प्रतिक्षा धन कमाने की इक्षा मै नही चाहता करोड़पति बनू जो हैं बस संतुष्ट रहूं बीबी बच्चों का भर्तार हूं समाज का आधार हूं यहीं हैं मेरा जीवन निर्वाह इसी से चलता मेरा परिवार मेरी जिन्दगी में बहुत कठिनाई है फिर भी यारों मेहनत की कमाई हैं Amrita tripathi 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Amrita Tripathi EDUCATION : ADDRESS :

Jhukna nhi aata

  _झुकना नहीं आता मुझे हर किसी  के आगे झुकना नहीं आता  चली हूं जबसे सफर पर रुकना नहीं आता जिसने सारी उम्र सिर्फ कहना ही सीखा है  उन्हें अक्सर किसी  को सुनना नही आता ख़ामोश रहना मुझे अब अच्छा लगता है सब कहते है की मुझे हंसना नहीं आता बचपन से जवानी तक वो रखते है जिन्हे उन बच्चो को बूढ़े मां बाप रखना नहीं आता जिससे रूठ जाए उसके अपने सभी  उस शख़्स को कभी रूठना नही आता  एक हार से ,जो जिंदगी हार जाते हैं  उन्हें गिरकर संभलना नहीं आता कहते है लोग की लिखना बड़ी बात है क्या हर किसी को जज़्बात लिखना नहीं आता साक्षी चौहान ग्वालियर (मध्य. प्रदेश) 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Sakshi Chauhan EDUCATION : ADDRESS :

Vastra

  _वस्त्र तुम जब धरा पर आए चारों तरफ़ खुशियां छाए मैने ढका था तुमको मैने सहारा दिया था तुमको मै न होता लोग हंसते कोमल काया को देखते मै हर मूल्यों में बिका हर देशों में मिला आत्म सम्मान का रखवाला हूं बड़ा ही दिलवाला हूं मेरे बीना कहां जाओगे न रहूं कैसे मुंह दिखाओगे मैं ही लाज रखता हूं हमेशा साथ देता हूं अफसोस... तुम चिता पर जले मैने साथ छोड़ा तुमको बस बाय बाय बोला घबराओ नहीं फिर मिलता हूं अगले जन्म में..... Amrita tripathi 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Amrita tripathi अगर आप अपनी कविता प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप व्हाट्सएप नंब पर संपर्क करें।

Ladki ka Dard

  _लड़की का दर्द मां बाप की लाडली बेटी हूं मुझे फलने फूलने दो सतयुग त्रेता द्वापर हर युग में मेरी पहचान थी बस कलयुग में मेरा उल्लास चला गया मेरी खुशी चली गई मै खुशी दू तो सब खुश हो जाएं मै रूठ जाऊं तो सब रुठ जाएं फिर.. समाज में मैं नगर.. डगर.. प्रताड़ित ही प्रताड़ित मै घर में असुरक्षित मां के गर्भ में असुरक्षित मै न औलाद न ही वारिस पराए घर की मेहमान मै प्रकृति हूं और सृजन भी क्यों कष्ट देते हो घर के बाहर कानून है घर में कैसे लाऊं कानून मुझे सम्मान दो मेरी रक्षा करो मां के गर्भ में बचाओ वो दिन दूर नहीं जब भारत में राम राज्य होगा बस राम राज्य Amrita tripathi 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Amrita Tripathi EDUCATION : ADDRESS :

Dhoop

  _धूप गर्मी में अच्छी नहीं लगती सर्दी में मन को लुभाती  कुछ पल के लिए कभी नहीं टिकती कभी कभी पेड़ो के झुरमुट छिपती देखो कोई देख न ले अरे... कोई पूछ न ले खिड़की से झांक लेती और आंगन से खिलखिला जाती कभी कभी तो दबे पांव भाग जाती आपने भी देखा हमने भी देखा कैसा है ये प्रकृति का लेखा शहर हो गांव हो हर जगह बस मेरी भरमार हो Amrita tripathi 👉 हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें 👈 Poet Amrita Tripathi अगर आप अपनी कविता प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो आप व्हाट्सएप नंबर 7771803918 पर संपर्क करें।