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Man ki bhasha

_ मन की भाषा

Written by Satish Sharma


कितना सुंदर है मौन भाव,

जो हर लेता सकल निराशा।

कथनी से जो न कह पाते,

वह कह देती मन की भाषा।


फुलवारी में राम सिया का,

अनायास ही दर्श हुआ था।

दोनों ने कुछ नहीं कहा पर,

नयनों का स्पर्श हुआ था।

जिह्वा एक अक्षर न बोली,

मुस्कान ने ही सब कह डाला।

प्रसन्न सिया ने पहनाया,

रह मौन राम को वर माला।

अधरों ने हलचल नहीं किया,

पर हुई पूर्ण हिय की आशा।


कथनी से जो न कह पाये,

वह कह देती मन की भाषा।


कभी पुष्प कहां बतियाते है,

अनुराग की लय में हैं गाते।

जब चले पवन नर्तन करते,

बिन बोले ही सब कह जाते।


निःशब्द हो रंग बिखेरे हैं,

भाषा के कुशल चितेरे हैं।


निज रूप गन्ध की बोली में,

नीरवपन कर देते खासा।

कथनी से जो न कह पाये,

वह कह देती मन की भाषा।


शशि कहाँ कभी कुछ कहता है,

हमजोली बन संग रहता है।

विहँसो तो वह भी हंसता है,

जैसी लय वैसे बहता है।

बिन कहे सन्देश सुना देता,

प्रियसी को भी बहला लेता।

चंदा चकोर से बिन बोले,

पूरी कर देता अभिलाषा।


कथनी से जो न कह पाये,

वह कह देती मन की भाषा।


किसी श्वान ने न कभी बात कही,

पर स्वामी से सब कहा सही।

कभी लोट पोट हो जाता है,

खुश हो कर पूँछ हिलाता है।

है सहलाता पैरों को कभी,

बिन कहे समूचा कह जाता।

चुपचाप रहे  मुँह न खोले

कभी प्रेम करे कभी करे रासा।


कथनी से जो न कह पाये,

वह कह देती मन की भाषा।


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Poet

Satish Sharma 

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