__ चला चलता गया
वक्त संग वह चलता गया, सदियों से चला रुकता नहीं
जानें कहां जाना उसे, चलता रहा कुछ कहता नहीं
मंज़िल कहां किस मोड़ पर,चलता रहा कुछ पता नहीं
दुनियां बदली वह भी बदला, उसी राह चला बदलता गया
कायम उसकी मंशा जो रही,
चलता रहा फिर रुकता नहीं
डर से नहीं डरता कभी, चलता रहा लिए हिम्मत वही
मुश्किलों में आगे बढ़ता रहा,
चलता रहा न रुकता कहीं
आशा की मशाल हाथ लिए,
सदियों से चला थकता नहीं
उम्मीद भरी उसकी आंखों में,
चलता रहा न सन्देह कभी
मंजिल मिलेगी कुछ रातों में,
चलता गया हिम्मत खोता नहीं
जानें कितने सैलाब आए गए,
टूटती उसकी दृढ़ता नहीं
तैर कर उस पार गया, तैरता रहा
न डूबता कहीं
मैल धुलें मंशा न गई,विश्वास
लिए चला चलता गया
दृढ़ जो उसका संकल्प रहा, चलता रहा फिर रुकता नहीं
तय करनी है लंबी दूरी, चलना है
अब रुकना नहीं
सपनों के धागे हाथों में है, चलना है न छोड़ना कभी
भ्रम में पड़ी दुनिया अभी, चलता रहा न रुकता कहीं
कबसे चला वह रुकेगा कब,
चलता रहा वह चलेगा अब
रोकने से न वह रुकेगा अब,
मयाजलों में न फसेगा अब
है सच्चा राही उसने ठान लिया,
अब तो दुनिया ने भी मान लिया
विश्वास रहा मंज़िल मिली, चाह
लिए चला और चल लिया
👉हमसे जुडने के लिए यहाँ click करें👈
Publisher
Om Tripathi
आप भी अगर साहित्य उत्थान के इस प्रयास में अपनी मदद देना चाहते हैं तो UPI ID. 9302115955@paytm पर अपनी इच्छा अनुसार राशि प्रदान कर सकते हैं।
Social Media Manager
Shourya Paroha
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
हमें बताएं आपको यह कविता कैसी लगी।