_पैसा
माना की बहुत जरूरी हूँ,
पर रिश्तों से दूरी भी हूँ।
मैं पैसा हूँ,
रोगी के लिए अमृत हूँ तो,
भोगी के लिए विष समान हूँ।
मैं पैसा हूँ,
जिसके पास नहीं मैं,
वो मुझे पाने की सोचता है।
हूँ जिसके पास वो मुझे बचाने में नींद खोता है।
मंदिर में जिसका जितना चलाना,
वैसे दर्शन मिलते हैं।
क्या भगवान भी प्रसाद का वजन तौलते हैं।
मैं पैसा हूँ,
संस्कारी के पास रहूँ तो वे मेरा मान बढाते हैं।
हूँ यदि व्यभिचारी के पास तो सब कुछ बरबाद कर जाता हूँ-
मैं पैसा हूँ,
माता पिता के पास रहूँ,
तो बच्चों से सेवा करवाता हूँ।
हूँ यदि बच्चों के पास तो उन्हें तिरस्कार पाता हूँ।
मैं पैसा हूँ,
मेरे लिए हर कोई हैरान और परेशान है।
टिकता उसके पास हूँ जहाँ दिल और दिमाग समान है।
मैं पैसा हूँ-----
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Poet
Vartika Dubey
EDUCATION :
ADDRESS : Pratapgarh Varanasi
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Publisher
Om Tripathi
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Social Media Manager
Shourya Paroha
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