डोले पछुआ की बयरिया
आयी शीत की घड़ी
भोर भये जब पक्षीं बोले
सब जग-जन निज नैना खोलें
कर जोरि प्रणाम करहुँ दिनकर
निशि तिमिर दूर आतप पाकर
ओस बिन्दु फसलों पर गिरके
ऐसे चमके जैसे नीलमणि
डोले पछुआ - - - - - - - -
आयी- - - - - - - - -
आयी मधुर बेला रजनी की
मन रही लुभाय दीप्ती चांँदनी की
प्रकाशमान तारों से अम्बर
लगे खूब मनमोहक सुन्दर
झिलमिल झलकारी जुगनू की
जैसे हीरों का झड़ी
डोले पछुआ - - - - - - - -
आयी- - - - - - - - -
Written by
Tamanna kashyap
Rajaparapur,
Sitarpur, UP.
Posted by
Om Tripathi
अच्छा लिखा है भाव बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंGod bless you
आपकी काव्य यात्रा के लिए बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है भाव बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंGod bless you
अच्छा लिखा है भाव बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंGod bless you
Thanx sir🙏🙏🙏
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