प्रेम की तारीखों में न करें सीमित |
प्रेम की परिधि है असीमित ।
प्रेम से निर्मित है ये सारा संसार ।
प्रेम विहीन जीवन निराधार।
प्रेम यदि देश से हो व्यक्ति हो जाए अमर।
प्रेम यदि साथ दे जीत ले हर समर ।
प्रेम लेने का नही देने का है नाम ।
प्रेन में जीत नहीं हार से विश्राम ।
प्रेम माँ का है तो हम सबसे धनवान।
स्वार्थी प्रेम हेतु न करे उनका अपमान |
पति-पत्नी का प्रेम जीवन भर का साथ ।
यदि तो चले गाड़ी के दो पहियों की भांति ।
Written by
Vartika Dubey
Phulpur
prayagraaj, U.P
Posted by
Om Tripathi
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